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Achar
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॥ ढाल ॥ ७ ॥ कोईलो पर्वत धुंधलोरे ॥ ५ देशी ॥
॥ एम निज निज मत थापता हो लाल, आव्या जिणेसर पासरे ॥ वालेसर ॥ करुणाकारक उपदिशे हो लाल ॥ अनुपम वचन विलासरे ॥ वालेसर ॥ जयो जयो जिनवर जगगुरु हो लाल ॥॥ जेहथी मीटे भव पासरे ॥ वा० ॥१॥ ए आंकणी ॥ दंसण सहित ज्ञानी कह्या हो लाल, देशविराधक साचरे॥ वा०॥ ज्ञान र हित किरिया करे हो लाल, तो पण विराधक वाचरे॥ वा० ॥ज०॥२॥ देश देश उपगारीआ हो लाल, स. मुदाय सिद्धि लहंतरे ॥वा०॥ तीन समूहे नेह उपजे हो लाल ॥ बिन्दु बिन्दु सरहुंतरे ॥ वा०॥ज० ३॥ त्रिण भुवनना योगथी हो लाल, पूरण लोक कहेवायरे ॥वा० ॥ केम ते एकमां थापीये हो लाल, एक सिथे तृप्ति न थायरे ॥ वा० ज० ॥ ४ ॥ ज्ञान समकित धोरी वहे हो लाल, संयम रथ सुविशालरे ॥ वा० ॥ बेसी जिनपंथे चढ्या हो लाल, थाशे ते परम निहालरे वा० ॥ ॥ ज०॥ ५॥ निज निज पद प्राप्ति सुधी हो लाल, ज्ञानाचारादिक सेवरे ॥ वा० ॥इम शुभ परिणामे करी
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