Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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Achar
५१६ ॥ अथ सीमंधर प्रमुख विचरता जिननी स्तुति ।।
॥श्री सीमंधर सेवित सुरवर, जिनवर जग जयकारीजी ॥ धनुष्य पांचशे कंचन वरणी, मूरति मोहन गारीजी ॥ विचरता प्रभु माहाविदेहें, भवि जिनने हिकारीजी ॥ प्रह उठी नित्य नाम जपीजें, हृदय कमलमां धारीजी ॥१॥ सीमंधर युग बाहु सुबाहु, सुजात स्वयंप्रभ नामजी ॥ अनंत सूर विशाल वज्रधर, चंद्रानन अभिरामजी ॥ चंद्र भुजंग इश्वर नेमि प्रभ, वीरसेन गुणधामजी ॥ महाजद्रने देवयशा वली, अजित करुं प्रणामजी ॥२॥ प्रभुमुख वाणी बहु गुण खाणी, मीठी अमीय समाणीजी ॥ सूत्र अने अर्थे गुंथाणी, गणधरथी वीर वाणीजी ॥ केवळनाणी बीज वखाणी, शिवपुरनी नीशाणीजी ॥ उलट आणी दिलमांहे जाणी, व्रत करो भवि प्राणीजी ॥३॥ पहेरी पटोली चरणां चोली, चाली चाल मरालीजी ॥ अति रूपाली अधर प्रवाली, आंखडली अणीयालीजी ॥ विघ्न निवारी सान्निध्यकारी, शासननी रखवालीजी ॥ धीरविमल कविरायनो सेवक, बोले नय निहालीजी ॥ ४ ॥ इति ॥
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