Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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Achar
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॥ अथ वीशस्थानक तपनी स्तुति ॥ ॥ पूछे गौतम वीरजिणंदा, समवसरण बेठा सुखकंदा, पूजित अमर सुरिंदा ॥ केम निकाचे पद जिनचंदा, किण विध तप करतां भव फंदा, टाले दुरितह दंदा ॥ तव भांखे प्रभुजी गत निंदा, सुण गौतम वसुभूति निंदा, निर्मल तप अरविंदा ॥ वी. शस्थानक तप करत महिंदा, जेम तारक समुदाई चंदा, तेम ए सवी तप इंदा ॥१॥ प्रथम पदें अरिहंत नमीजें, बीजे सिद्ध पवयण पद त्रीजे, आचारज थेर ठवीजे ॥ उपाध्यायने साधु ग्रहीजे, नाण दंसण पद विनय वहीजें, अगीयारमे चारित्र लीजें ॥ बंभवय धारीणं गणीजें, किरियाणं तवस्स करीजें, गोयम जिणाणं लहीजें ॥ चारित्र नाण सुअ तिथ्थस कीजें, त्रीजे भव तप करत सुणीजें, ए सविजिन तप लीजें ॥२॥ आदि नमो पद सघले ठवीस, बार पन्नर बार वली छत्रीस, दस पणवीस सगवीस ॥ पांचने सडसठ तेर गणीस, सत्तर नवकिरिया पण वीश, बार अठावीस चौवीस ॥ सीत्तर गवन पीस्तालीश, पांच लोगस्स काउस्सग्ग रहीश, नोकारवाली वीश ॥ एक
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