Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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Achar
ष्टापद आबू, तारंग गिरिने जुहारजी॥ श्रीफल वर्द्धि, पास मंडोवर, शंखेसर प्रभु देवजी ॥सयल तीरथर्नु, ध्यान धरीजें, अहनिश कीजे सेवजी ॥२॥ वरदत्तने, गुणमंजरी परबंध, नेमि जिनेसर दाख्योजी ॥ पंचमी तप करतां, सुख पाम्या, सुत्र सकलमा नांख्योजी ॥ नमोनाणस्स इम, गणणुं गणिये, विधि सहित तप कीजेंजी ॥ उलट धरी, उजमणुं करतां, पंचमी गति सुख लीजेंजी ॥ ३ ॥ पंचमी, तप, जे नर करशे, सान्निध्य करे अंबाइजी ॥ दोलतदाई, अधिक सवाइ देवीये ठकराइजी॥ तप गच्छ अंबर. दिनकर सरिखो श्री विजयसिंह सरीशजी ॥ वीरविजय, पंमित कविराजा, विबुध सदा सुजगीशजी ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ अथ अष्टमी स्तुतिः ॥ ॥चउवीसे जिनवर, प्रणमुं हुं नितमेव।। आठम दिन करिये, चंद्रप्रभुनी सेव ॥ मूरति मन मोहे, जाणे पूनिम चंद ॥ दीगं दुःख जाये, पामे परमानंद ॥१॥ मिलि चोसठ इंद्र, पूजे प्रभुजीना पाय ॥ इंद्राणी अपच्छरा, कर जोडी गुण गाय ॥ नंदीश्वर द्वी.
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