Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

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Page 532
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ष्टापद आबू, तारंग गिरिने जुहारजी॥ श्रीफल वर्द्धि, पास मंडोवर, शंखेसर प्रभु देवजी ॥सयल तीरथर्नु, ध्यान धरीजें, अहनिश कीजे सेवजी ॥२॥ वरदत्तने, गुणमंजरी परबंध, नेमि जिनेसर दाख्योजी ॥ पंचमी तप करतां, सुख पाम्या, सुत्र सकलमा नांख्योजी ॥ नमोनाणस्स इम, गणणुं गणिये, विधि सहित तप कीजेंजी ॥ उलट धरी, उजमणुं करतां, पंचमी गति सुख लीजेंजी ॥ ३ ॥ पंचमी, तप, जे नर करशे, सान्निध्य करे अंबाइजी ॥ दोलतदाई, अधिक सवाइ देवीये ठकराइजी॥ तप गच्छ अंबर. दिनकर सरिखो श्री विजयसिंह सरीशजी ॥ वीरविजय, पंमित कविराजा, विबुध सदा सुजगीशजी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ अष्टमी स्तुतिः ॥ ॥चउवीसे जिनवर, प्रणमुं हुं नितमेव।। आठम दिन करिये, चंद्रप्रभुनी सेव ॥ मूरति मन मोहे, जाणे पूनिम चंद ॥ दीगं दुःख जाये, पामे परमानंद ॥१॥ मिलि चोसठ इंद्र, पूजे प्रभुजीना पाय ॥ इंद्राणी अपच्छरा, कर जोडी गुण गाय ॥ नंदीश्वर द्वी. For Private And Personal Use Only

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