Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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॥ अथ बीजनी स्तुति ॥ ॥ महामंडणं पुन्नसोवन्नदेहं, जणाणंदणं केवलनाण गेहं ॥ महानंद लच्छी बहू बुद्धिरायं, सुसेवामि सीमंधरं तित्थरायं ॥१॥ पुरा तारगा जेह जीवाण जाया, भविस्संति ते सव भव्वाण ताया ॥ तहा संपयं जे जिणा वट्ट माणा, सुहं दितु ते मे तिलोयप्पहाणा ॥२॥ दुरुत्तार संसार कुव्वार पोयं, कलंका वली पंक पख्खाल तोयं ॥ मणोवंछियत्थे सुमंदारकप्पं, जिणंदा गमं वंदिमो सुमहप्पं ॥ ३ ॥ विकोसे जिणंदाणणं भोजलीणा, कलारूव लावण्ण सोहग्ग पीणा ॥ वहं तस्स चित्तमि णिच्चं पिझाणं, सिरी भारई देहि मे सुद्धनाणं ॥ ४ ॥
॥ अथ पंचमीनी स्तुति ॥ ॥नेमि जिनेसर, प्रभु परमेसर, वंदो मन उहासजी ॥ श्रावण शुदी, पंचमी दिन जनम्या, हुओ त्रिजग प्रकाशजी ॥ जन्म महोत्सव, करवा सुरपति, पांचरूप करी आवेजी ॥मेरु शिखरपर, ओच्छव करीने, विबुध सयल सुख पावेजी ॥ १ ॥ श्री शत्रुजय, गिरनार वंचू, कंचन गिरि वैभारजी ॥ समेत शिखर, अ.
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