Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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॥ अथ श्री शंखेश्वर पार्थजिन स्तुति ॥ ॥ कल्याण कारक, दुःख निवारक, सकल सुख आवास ॥ संसार तारक, मदन मारक, श्री शंखेश्वर पास ॥ अश्वसेन नंदन, भविया नंदन, विश्ववंदन देव ॥ भवभीत भंजन, कमठ गंजन, नमाजे नित्य मेव ॥ १॥ त्रयलोक दीपक, मोह झीपक, शिव सरोवर हंस ॥ मुनि ध्यान मंमन, दुरित खंमन, भुवन शिर अवतंस ॥ द्रव्य भाव थापन, नाम भेदी, जक्ष निखेपा चार ॥ ते देव देवा, मुक्ति लेवा, नमो नित्य सुखकार ॥२॥ षट द्रव्य गुण, परजाय नयगम, भेद विसद वखाणी ॥ संसार पारा, वार तरणी, कुमति कंद कृपाणी ॥ मिथ्यात भूधर, शिखर भेदन, वन सम जेह जाणी ॥ अति नगति आणी, भवि प्राणी, सुणो ते जिनवाणी ॥ ३ ॥ जश वदन सारद, चंद सुंदर, सुधा सदन विशाल ॥ निकलंक सकल, कलंक तमहर, अंग अति सुकुमाल ॥ पद्मावती सा, भगवती सवी, विघ्न हरण सुजाणी ॥ श्री संघने, कल्याण का. रणी, हंस कहे हित आणी ॥ ४ ॥ इति ॥
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