Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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पद गीरनार, चित्रकोट वैभार ॥ सोवन गीरी समेत श्रीकार, नंदी सर वरद्वीप उदार, जिहां बावन विहार ॥ कुंमल रुचकने इष्युकार, शाश्वता अशाश्वता चैत्यविचार, अवर अनेक प्रकार ॥ कुमति वचन मभूल गमार, तीर्थ भेटे लाभ अपार, भवियण भावे जोहार ॥२॥ प्रगट छठे अंगे कहांणी, द्रुपदी पांडवनी पटराणी, पुजा जिन पढमांणी ॥ विधसुं कीधी उलटे आणी, नारद मिथ्यादृष्टि अन्नांणी, छांडया अविरती जांणी ॥ श्रावक कुलनी ए सहिनाणी, समकीत आला आदाणी, सातमे अंग वखांणी ॥ पुजनीक प्रतिमां कहांणी, एम अनेक आगमनी वांणी, ते सुणजो भवि प्राणी ॥३॥ कटी कटी मेखल घुघरी आली, पाए रमझम नेउर वाली, उज्वल गीरी रखवाली ॥ अधर लाल जीस्यो परवाली, कनकवान काया शुकमाली. काटि लहके अंबाडाली ॥ वयरीने जागे विकराली, संघ विघन हरे उजमाली, अंबाइ देवी मयाली ॥ महिमाए दिस दिस उजुआली, गुरु श्री संघविजय संभाली, दिन दिन नित दीवाली ॥४॥ इति ॥
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