Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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मेलवा मुक्ति बाला ॥ प्रवचन पदमाला, दृतिकाए दयाला ॥ उरधरी सुकमाला, मूकीयें मोहजाला ॥ ॥३॥ अति चपल वखाणी, सुत्रमा जे प्रमाणी ॥ भगवति ब्रह्माणी, विघ्नहंता निर्वाणी ॥ जिनपद लपटाणी, कोडी कल्याण खाणी ॥ उदयरत्ने जाणी, सुखदाता सयाणी ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ श्री अरनाथ जिनस्तुति ।। द्रुत विलंबित छंद ।।
॥ अर जिनाय सुसाधु सुरेसुरा, नमी नरेसर खेचर भूचरा ॥ गणि विराजित जेह जिनेश्वरा, भुजग किन्नर सेवित भूधरा ॥ १॥ दोष अष्टादश दलित जे दुर्द्धरा, जगत पावन सर्व तीर्थकरा ॥ मदन मंजन गंजन जे जरा, अनंत तेह नमो अजरामरा ॥ २ ॥ विश्व प्रकाशक केवल भाषिता, दुर्गति पंथ पड़े तस राखिता ॥ तेह पीस्तालीश सूत्र संसारियें, दुरित पडल दूरे जिम वारीये ॥३॥ पीन पयोधर धारनी धारणी, विघ्नशासन वार निवारिणी ॥ परम उदय पद संपद कारणी, मंगल वेल जे सिंचत सारणी ॥ ॥४॥ इति ॥
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