Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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लगे अमर पळावो, तेह तणो पडहो वजडावो, ध्यान धरम मन भावो ॥ संवत्सरी दिन सार कहेवाय, संघ चतुर्विध भेलो थाय, बारसे सूत्र सुणाय ॥ थिरावली ने समाचारी, पटावली प्रमाद निवारी, सांभलजो नरनारी ॥ आगम सूत्रने प्रणमीश, कल्पसूत्रशुं प्रेम धरीश, शास्त्र सर्वे सुणीश ॥ ३ ॥ सत्तर भेदी जिन पूजा रचावो, नाटक केरा खेल मचावो ॥ विधिशें स्नान भणावो, आडंबरशुं देहरे जइए, संवत्सरी पडिकमणुं करीए, संघ सर्वने खमीए ॥पारणे साहमिवबल कीजे, यथाशक्तिए दानज दीजे, पुन्य भंडार भरीजे॥
श्री विजयदेम सूरि गणधार, जसवन्तसागर गुरु उदार, जिणंदसागर जयकार ॥ ४॥
॥ अथ रोहीणी तपनी स्तुति ॥ वासुपूज्य जिणेसर, पुजो मनने रंग ॥ रोहीणी नक्षत्रे, उपवास करो अतिचंग ॥ सात वरस ए उपर, सात मास परीमाण ॥ एतप रोहिणीनो, आपे मानज ठाम ॥१॥ श्रीवासुपूज जिनंगज, बरपति मघवा नाम ॥ तस पनि लक्ष्मी, तस तनया आजिराम ॥
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