Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Anh
रोहणी जोवनवंति, परणी राय अशोक ॥ एम सयल जिणेसर, भाख बुझवा लोक ॥२॥ सुंदरी एक रडति, देखी पुछे नारी ॥ कुण नाटिक होवे, नृप कहे तुझ मद भारी ॥ राये नाख्यो धरति, अंगज तोये प्रसन्न ॥ एम आगम वाणिं, निसुणो ते धन धन्न ॥३॥ तप शासन देवी, धरयुं सिंघासण तास ॥ राजाने राणा, मन हुवो हरख उल्लास ॥ रोहणि तप कारक, इम लहो चित्त अजंग ॥ बुध हंस विजय शिष्य, धीरने सुख संजोग ॥४॥ इति ।।
॥ अथ श्री शांतिजिन स्तुति ॥ ॥ गजपुर अवतारा, विश्वसेन कुमारा ॥ अवनितले उदारा, चक्कवी लछी धारा ॥ प्रति दिवस सवाया, सेवियें शाति सारा ॥ भवजलधि अपारा, पामायें जेम पारा ॥१॥ जिनगुण जस मल्लि, वासना विश्व वल्लि ॥ मन सदन च सल्लि, मानवंती निसल्लि ॥ सकल कुशल वल्लि, फूलडे वेग फूली ॥ दुरगति तस दूल्लि, तासदा श्री बहुली ॥ २॥ जिन कथित विशाला, सूत्रश्रेणी रसाला ॥ सकल सुख सुखाला,
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539