Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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मिलि सुरवरनी कोड ॥ अठाहीमहोच्छव, करता होडा होड ॥२॥ शेजूंजा शिखरे, जाणी लाभ अपार॥ चउमासे रहिया, गणधर मुनि परिवार || भवियणने तारे, देई धरम उपदेश ॥ दूध साकरथी पण, वाणी अधिक विशेष ॥३॥ पोसो पडिकमj, करिये व्रत पञ्चक्खाण॥आठम तप करतां, आठ करमनी हाण ॥ आठ मंगल थाये, दिन दिन कोडि कल्याण ॥ जिन सुखसूरि कहे, इम जीवत जनम प्रमाण ॥४॥इति ॥
॥ अथ एकादशीनी स्तुतिः ॥ ॥ माधव उज्वल एकादशी, गणधर पद थापत चित्तवसी ॥ चउ सहस्स अधिक सय च्यार रीसी, कीया त्रिशला नंदन समरुसी ॥१॥ उप्पिणी अंतिम जिनवरा, अवसप्पिणी आदिम गुण भरा ॥ दशमी दिन केवल श्रीवरा, दश खेत्रे विचरे तिथंकरा ॥२॥ प्रभु वदन पदम द्रह नीसरी, जग पावन त्रिपदी सुरसरी ॥ पसरी गणधर हृदे पाप हरी, मुनि माहंत कीलें रंग भरी ॥ ३ ॥ महावीर पदंबुज मधुकरी, रणकणति याए नेउरी॥ सिद्धाई सहं शांतिकरी, जिनविजयसुं भक्ति अलंकरी ॥४॥ इति ॥
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