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॥ अथ श्री पीस्तालीस आगमनुं स्तवन ।। ॥ भवी तुमे बंदोरे सुरीश्वर गच्छराया ॥ ए देशी॥
॥ भवि तुमे वंदोरे, ए आगम सुखकारी ॥ पाप निकंदोरे, प्रभू वाणि दिलधारि ॥ ए आंकणी॥ शासन नायक वीर जिणेसर, आसन्न जे उपगारी ॥ प्रभु मुख त्रिपदी पांमी गणधर, गौतमनी बलिहारी ॥ भवि० ॥१॥ प्रथम अंग श्री आचारंगे, मुनि आचार वखाएयो।सहस अढार ते पदनी संख्या. ठाण बमणा सह जांणो ॥ भवि०॥२॥ सुगडांग ठाणंगने समवायंग. पंचमोभगवति अंग ॥ लाख बिहने सहस अग्यासी, पद रुडां अति चंग ॥ भवि० ॥३॥ ज्ञाता धर्म कथा अंग छठ, कथा उठ कोड ते जाणो ॥ पंचमे आरे दूषमां कालमां, कथा ओगणीस वखाणो ॥ नवि० ॥ ४ ॥ उपासग ते सातमो जांणो, दश श्रावक अधिकार ॥ ते सांभळतां कुमति बुइया, जिनपडिमां जयकार भवि० ॥ ५ ॥ अंतगम दशांगने अनुत्तर उवाई, प्रश्न व्याकरण वखांणो॥शुज अशुभ फल कर्म विपाक ए, अंग इग्यार प्रमाणो ॥ भवि०
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