Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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४९९
सम्यक दृष्टि, शासन सान्निध्य कारी जी ॥ संघना सकल समीहित पुरो, दोहग दुःख निवारी जी ॥ एकादशी तप आराधकने, मन कामित सुख आपोजी ॥ हंस कहे श्री जिन आणामां, मन भवि स्थिर करी थापो जी ॥ ४॥ इति ॥
॥ श्री ऋषभदेवजीनी स्तुति ॥ ॥ कनक तिलक भालें, हार हीए निहालें ॥ ऋषभ पाय पखालें, पापना पंक टालें ॥ अरचित वरमाले, फुटरी फुलमाले ॥ नरभव अजु आले, रागर्ने रोस टालें ॥१॥ दुरति दुर दुकाला, पुन्य पाणी सुगाला ॥ जस गुणवर बाला, रंगे गाए रसाला ॥ भविक नर त्रिकाला, भावे वंदु मयाला ॥ जय जि. नवर माला, न्याय लच्छि विशाला ॥ २॥ अमीबरस समांणी, देवे देवें वखाणी॥ वर गुण मणी खांणी, पाप वल्लि कृपाणि ॥ सुण सुणरे प्राणी, पुन्यकि पटराणि ॥ जय जिनवर वाणि, सेवीये सार जाणी॥ ॥३॥ रमझम झमकारा, नेउरीचा उदारा ॥ कटि तटि खलकारा, मेखला चा अपारा ॥ अमल कमल
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