Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

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Page 517
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०३ सवि शिणगार ।। जिन शासन केरा, सघला विघन निवार॥ पुण्य रसने जिनजी, सुख संपति हितकार ॥४॥ ॥ श्री महावीर स्वामीनी स्तुति ॥ मूरति मनमोहन, कंचन कोमल काय ॥ सिद्धा. रथ नंदन. त्रिशला देवी सुमाय ॥ मृगनायक लंछन, सात हाथ तनु मान ॥ दिन दिन सुखदायक, स्वामी श्री वर्द्धमान ॥ १॥ सुर नर वर किन्नर, वंदित पद अरिविंद॥कामित भर पूरण, अभिनव सुरतरु कंद ॥ भवियणनें तारे, प्रवहण सम निसिदीस ॥ चोवीसे जिनवर, पणमुं विसवा वीस ॥२॥ अरथे करी आगम, भाख्या श्री भगवंत ॥ गणधर ते गुंथ्या, गुण निधि ग्यान अनंत॥ सुरगुरु पण महिमा, कही नशके एकंत॥ समरु सुखदायक, मनसुध सूत्र सिद्धांत ॥३॥ सिद्धाइका देवी, वारे विघन विशेष ॥ सहु संकट चूरे, पूरे आस अशेष ॥ अहनिसि कर जोडी, सेवे सुर नर इंद॥जंपई गुण गण इम, श्री जिन लाभ सूरिंद ॥ ४ ॥ इति । ॥ अथ सीमंधर जिन स्तुति ।। ॥ श्री सीमंधर, मुजने वाला, आज सफल For Private And Personal Use Only

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