Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

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Page 518
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ सुविहाणुंजी॥ त्रिगडे तेजें, तपता जिनवर, मुज तुठा हुं जाणुंजी ॥ केवल कमला, केलि करंतो, कुल मंडण कुल दीवोजी ॥ लाख चोरासी, पूरव आयु, रुकमिणी वर घणुं जीवोजी ॥१॥ संपतिकाले, वीश तीर्थकर, उदया अभिनव चंदाजी ॥ केइ केवली केइ, बालक परण्या, केइ महीपती सुख कंदाजी, ॥ श्री सीमंधर, आदि अनोपम, महाविदेह खेत्रे जिणंदाजी ॥ सुर नर कोडा, कोडी मली वली, जोवे मुख अरविंदाजी ॥ २॥ सीमंधर मुख, त्रिगडु जोवा हुं अलजायो वाणीजी ॥ आमा डुंगर, आवी न शकुं, वाट विषम अरु पाणीजी ॥ रंग भरि राग, धरी पाय लायं, सूत्र अर्थ मन सारोजी ॥ अमृत रसथी, अधिक वखाणी, जीवदया चित धारोजी ॥ ३ ॥ पंचांगुलीमें, प्रत्यक्ष दीठी, हूं जाणुं जग माताजी ॥ पेहेरण चरणा, चोली पटोली, अंधर बिराजे राताजी ॥ स्वर्ग भुवन, सिंघासण बेठी, तुहिज देवी विख्याताजी ॥ सीमधर, शासन रखवाली, शांति कुशल सुख दाताजी ॥४॥ इति । For Private And Personal Use Only

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