Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

View full book text
Previous | Next

Page 521
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधार, त्रिपदीना विस्तार ॥ वीर पंचम कल्याणक जेह, कल्प सूत्र मांहि भाख्युं तेह, दीपोछव गुण गेह॥ उपवास छठ अठम करे जेह, सहस लाख कोडी फल लहे तेह, श्री जिन वाणी एह ॥ ३ ॥ वीर निर्वाण समय सुर जाणी, आवे इन्द्र अने इन्द्राणी, भाव अधिक मन आणी ॥ हाथ ग्रही दीवी निसि जाणी, मेराश्या मुख बोले वाणी, दीवाली कहेवाणी ॥ इणि परे दीपोछव कर ओ प्राणी, सकल सुमंगल कारण जाणी, लाभ विमल गुणखाणी ॥ वदति रत्न. विमल ब्रह्माणी, कमल कमंगल वीणा पाणी, यो सरसती वरवाणी ॥ ४ ॥ इति संपूर्णम् ॥ ॥श्री सिद्धचक्रनी थोयो॥ ॥ सिद्धचक्र सेवो सुविचार, आणी हैडे हर्ष अपार, जेम लहो सुख श्रीकार ॥ मन शुद्धे नव ओळी कीजे, अहोनिश नवपद ध्यान धरीजे, जिनवर पूजा कीजे ॥ पडिकमणां दोय टंकना कीजे, आठ थोये देव वांदीजे, भूमि संथारो कीजे ॥ मृषा For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539