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४९७ ॥ अथ अष्टमीनी स्तुति ॥ ॥ अष्टमी वासर मज्झिम रयणी, आठ जाति दिशि कुमरी जी ॥ जन्म घरे आर्वे गहगहती, निज निज कारज समरी जी, अढार कोडा कोडि सागर अंतर, तुझ तोलें कूण आवे जी ॥ ऋषभ जगत गुरु दायक जननी, इम कही गीत सुणावे जी ॥१॥ आठ करम मद पुरण जाणी, कलसा आठ प्रकार जी ॥ आठ इंद्राणी नायक अनुक्रमे, आठना वर्ग उदार जी ॥ अष्ट प्रकारी पुजा करीने मंगल आठ आलेखे जी ॥ दाहीण उत्तर दश जिनवरनो, जन्म महोत्सव लेखे जी ॥ २॥ प्रवचन माता आठ आराधो, आठ प्रमादने बांधो जी ॥ आठ आचार वि. भुषित आगम, भणतां शिवसुख साधो जी॥ आठमें गुणठाणे चढी अनुक्रमें, क्षेपक श्रेणि मंडाण जी ॥ अाठमें अंगे अंतगड केवली, परिपामो निर्वाण जी ॥३॥ वैमानक (१) ज्योतिक (२) भुवनाधिप, (३) व्यंतरपति ( ४ ) सुरनारीजी ॥ हुद्रादिक अडदोष निवारी, अडगुण समाकत धारी जी ॥
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