Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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सारा, देह गोखीर धारा ॥ सरस्वति जयकारा, होनमे नांण धारा ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ श्री शांतिजिन स्तुति ॥ ॥ सकल सुखाकर, प्रणमित नागर, सागर परें गंभीरोजी ॥ सुकृत लतावन, सीचन घनसम ॥ भविजन मनतरु कीरोजी ॥ सुरनर किन्नर, असुर वि. द्याधर, वंदित पद अरविंदजी ॥ शिवसुख कारण, शुन परिणामें, सेवो शांति जिणंदजी ॥ १ ॥ सयल जिनेसर, भुवन दिणेसर, अलवेसर अरिहंताजी ॥ भविजन कुमुद, संबोधन शशिसम, भय भंजन भगवंताजी ॥ अष्ट करम अरि, दल अति गंजन, रंजन मुनिजन चित्ताजी ॥ मन शुढे जे, जिननें आराधे, तेहने शिवसुख दित्ताजी ॥ २॥ सुविहित मुनिजन, मान सरोवर, सेवित राज मरालोजी ॥ कलिमल सकल, निवारण जलधर, निर्मल सूत्र रसालोजी ॥ आगम अकल, सुपद पदें शोभित, उंडा अर्थ अगाधो जी॥ प्रवचन वचना, तणी जे रचना, भविजन भावें आराधोजी ॥३॥ विमल कमल दल, निर्मल
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