Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

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Page 476
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ च सुरोज्झिताःसुरभयाञ्चक्रुःपतन्त्योऽम्बरादाराविन्रमरोचिताः सुमनसो मन्दारवाराजिता ॥ २ ॥ शान्ति वस्तनुतान्मिथोऽनुगमनाद्यन्नैगमाद्यैर्नयैरक्षोभं जनेहऽतुलां बितमदोदीर्णाङ्गजालं कृतम् । तत्पूज्यैर्जगतां जिनैः प्रवचनं हप्यत्कुवाद्यावलीरक्षोभञ्जनहेतुलास्टितमदो दीर्णाङ्गजालंकृतम् ॥ ३ ॥ शीतांशुविषि यत्र नित्यमदधद्रन्धाढ्यधूलीकणा, नालीकेसरलालसा समुदिताशुभ्रामरीभासितां। पायद्वः श्रुतदेवता निदधती तत्राब्जकान्ती क्रमौ, नालीकेसरलालसा समुदिता शुभ्रामरीजासिता ॥ ४ ॥ ॥ अथाजितनाथस्तुतिः ॥ ॥ तमजितमभिनौमि यो विराजद्वनघनमेरुपरा गमस्तकान्तम् । निजजननमहोत्सवेऽधितष्ठावनधनमेरु परागमस्तकान्तम् ॥१॥ स्तुत जिननिवह तमर्तितताध्वनदसुरामरवेण वस्तुवन्ति । यममरपतयः प्रगाय पार्श्वध्वनदसुरामरवेणव स्तुवन्ति ॥२॥ प्रवितर वसति त्रिलोकबन्धो गम नययोगततान्तिमे पदे हे। नूनमत विततापवर्गवीथीगमनययो गततान्ति मेऽपदेहे ॥३॥ For Private And Personal Use Only

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