Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

View full book text
Previous | Next

Page 477
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३ सितशकुनिगताशु मानसीहात्तततिमिरंमहभा सुराजिताशम् । वितरतु दधती पविं क्षतोद्यत्तततिमिरं मद. भासुराजिता शम् ॥४॥ ॥ अथ संभवजिनस्तुतिः ॥ ॥ निर्भिन्नशत्रुभवभय शं भवकान्तारतार तार ममारम् । वितर त्रातजगत्रय शंभव कान्तारतारममारम् ॥ १॥ आश्रयतु तव प्रणतं विभयापरमारमारमानमदमरैः।। स्तुतरहित जिनकदम्बक विभयापरमार मारमानभमैरः ॥ २ ॥ जिनराज्या रचितं स्तादसमाननयानयानया यतमानम् । शिवशर्मणे मतं ढधढसमाननयानयानया यतमानम् ॥३॥शृङ्खलनृत्कनकनिभा यातामसमानमानमानवमहिताम् । श्रीवज्रशृङ्खलां कजयातामसमानमानमानवमहिताम् ॥४॥ ॥ अथाभिनन्दनजिनस्तुतिः ॥ त्वमशुभान्यजिनन्दन नन्दिता सुरवधूनयनः परमोदरः । स्मरकरीन्द्रविदारणकेसरि न्सुरवधूनयनः परमोदरः॥१॥ जिनवराः प्रयतध्वमितामया मम तमोहरणाय महारिणः। प्रदधतो भुवि विश्वजनीनता For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539