Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

View full book text
Previous | Next

Page 507
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९३ पोढया, प्रेम धरीने जगावो जी ॥ भावप्रभ सूरि कहे नहीं ए कथली, अध्यात्म उपयोगी जी ॥ सिद्धाइका देवी सान्निध्य करेवी, साधे ते शिवपद भोगी जी ॥ ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ बीजनी स्तुति ॥ ॥जंबु द्वीपे अहनीश द्वीपे, दोय सूरज दोय चंदाजी ॥ तास विमाने श्री ऋषभादिक, शाश्वता जिनचंदाजी ॥ तेह भणी उगते शसी निरखी, प्रणमे भवि जिन वंदाजी ॥ बीज आराधो धर्मनी बीजे, पूजी शांति जिणंदाजी ॥१॥ द्रव्य भाव दोय भेदे पूजो, चोवीशे जीन चंदाजी ॥ बंधन दोय करीने दुरे, पाम्या परमाणंदा जी ॥ दृष्ट ध्यान दोय मत मतांगज, भेदन मत महेंदाजी ॥ बीजतणे दीन जे आराधे, जेम जगमांहे चीरनंदाजी ॥२॥ दुवीध धर्म जीनराज प्रकाशे, समोवसरण मंडाणजी ॥ निश्चय ने व्यवहार बेहसुं, आगम मधुरी वाणी जी ॥ नरक तिर्यंच गती दोय न होय, बीज ते आराधे जी ॥ दुविध दया तस थावर केरी, करता शिवसुख साधेजी For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539