Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand

View full book text
Previous | Next

Page 490
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ ॥ अथ नमिनाथजिनस्तुतिः ॥ ॥ स्फुरद्विद्युत्कान्ते प्रविकिर वितन्वन्ति सततं ममायासं चारो दितमद नमेऽघानि लपितः । नमद्भव्यश्रेणीभवभयभिदां हृद्यवचसा-ममायासंचारोदितमदनमेघानिल पितः ॥१॥ नखांशुश्रेणीभिः कपिशितनमन्नाकिमुकुटः, सदा नोदी नानामयमलमदारेरित तमः । प्रचक्रे विश्वं यः स जयति जिनाघीशनिवहः, सदा नो दीनानामयमलमदारोरततमः॥२॥ जलव्यालव्याघ्रज्वलनगजरुग्वन्धनयुधो, गुरुर्खाहोऽपातापदधनगरीयानसुमतः । कृतान्तस्त्रासीष्ट स्फुटविकटहेतुप्रमितिभा-गुरुर्वाहो पाता पदघनगरीयानसुमतः ॥३॥ विपक्षव्यूहं वो दलयतु गदाक्षावलिधरासमा नालीकालीविशदचलना नालिकवरम् । समध्यासीनाम्भोभृतघननिमाम्भोधितनया - समानाली कालीविशदचलनानालिकवरम् ॥ ४ ॥ ॥ अथ नेमिनाथजिनस्तुति ॥ ॥ चिक्षेपोर्जितराजकं रणमुखे यो लक्षसंख्यं क्षणाशदक्षामं जन भासमानमहसंराजीमतीतापदम् । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539