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योग शुद्धबोध ॥ धन्य जिनशासन जग जयो, जिहां नहि किश्यो विरोध ॥ ५ ॥
॥ ढाल ॥ १ ॥ राग आशावरी ॥ ॥ श्री जिनशासन जग जयकारी, स्याद्वाद शुद्ध रूप रे । नय एकांत मिथ्यात निवारण, अकल अभंग अनूपरे ॥श्री० ॥ १॥ ए आंकणी ॥ कोई कहे एक कालतणे वश, सकल जगत गति होय रे ॥ काले उ. पजे काले विणसे, अवर न कारण कोयरे ॥ श्री०॥२॥ काले गर्भ धरे जग वनिता, काले जन्मे पुतरे ॥ काले बोले काले चाले, काले आले घरसुतरे ॥श्री० ॥३॥ काले दुधथकी दहीं थाये, काले फल परिपाकरे ॥ विविध पदारथ काल उपाये, काले सहं थाय खाखरे ॥श्री०॥ ४॥ जिनचोवीश बार चक्रवर्ति, वासुदेव बलदेवरे ॥ काले कलित को न दीसे,जसु करता सुर सेवरे॥श्री०॥५॥उत्सर्पिर्णी अवसर्पिणी आरा, छए जुइ जुइ भातरे ॥ ऋतुकाल विशेष विचारो, भिन्न भिन्न दिन रातरे ॥श्री ॥६॥ काले बाल विलास मनोहर,
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