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कुण न मागेरे ॥ ७ ॥ स० ॥ शुं विषया रस राचोरे ॥ स०॥ भवसुख जाणो काचोरे ॥ स०॥ घरनो धंधो छोडोरे ॥स०॥ धर्मशुं ममता जोडोरे ॥९॥स०॥ मणि उद्योत प्रभु पामीरे ॥ स०॥ किम थाये विषयारामीरे ॥ स० ॥ कुण पीये खाटी छाशरे ॥ स० ॥ मुकी अमृत सुवासरे ॥ १० ॥ इति श्री सुमतिनाथ स्तवन ॥
॥ श्री नवकारनो रास ॥ ॥ सरसती स्वामिनी यो मुज माय तो, गौतम गणधर लागुजी पाय तो ॥ ते फल जाणजो श्री नवकार तो, रास भए॒ श्री नवकारनो ॥१॥ पेहेला लीजे श्री अरिहंतनुं नाम तो, साधु सर्वने करुं प्रणाम तो ॥ सदगुरु वाणी तुमे सांभलो, भुल्या जो अक्षर लीखज्यो जीगमतो ॥ चौद पूर्व पेहेलां कह्यां, ते पछी पुरशे मन तणी आश तो ॥ ते० ॥ रा०॥२॥ एणे मंत्रे बांध्यो बीज आकाश तो, अमावास्या पुनिम कह॥ वृक्ष उपामी चलावियो साथे तो, विचे वाघ वासो वसे, डाकणी साकगी लागेजी पाय तो ॥ ते०॥
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