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३३८ ए आंकणी ॥ आठ कर्म अलगां करी, सारथां आतम काम हो ॥ प्र०॥छुट्या संसारनां दुःखथकी, तेणे रहेवानुं किहां ठाम हो ॥ प्र० ॥ शि० ॥२॥ वीर कहे जर्व लोकमां, सिद्ध शिलातणुं गम हो गौतम । स्वर्ग छवीशनी उपरें, तेहना बारे नाम हो ॥ गौ०॥ शि० ॥ ३ ॥ लाख पिस्तालीश जोजना, लांबी पोहोली जाण हो॥ गौ० ॥ आठ जोजन जाडी विचें, छेडे मांख पंख ज्यु जाण हो ॥ गौ०॥ शि०॥ ॥४॥ उज्वल हार मोती तणो, गोदुग्धशंख वखाण हो ॥ गौ० ॥ ते थकी ऊजली अति घणी, उलट छत्र संठाण हो ॥ गौ०॥ शि० ॥ ५॥ अर्जुन स्वर्णसम दीपती, गवारी मवारी जाण हो ॥ गौ० ॥ फटक रत्न थकी निर्मली, सुंआली अत्यंत वखाण हो ॥ गौ०॥ शि० ॥६॥ सिद्धशिला ओलंघी गया, अधर रह्या सिद्ध राज हो ॥गौ०॥ अलोकशुं जाई अड्या, सारयां आतम काज हो ॥ गौ० ॥ शि०॥७॥ जन्म नहीं मरण नहीं, नहीं जरा नहीं रोग हो ॥ गौ०॥ वैरी नहीं मित्रज नहीं, नहीं संजोग विजोग हो ॥
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