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गौ० ॥ शि० ॥ ८ ॥ भूख नहीं तरषा नहीं, नहीं हर्ष नहीं सोग हो । गौ० ॥ कर्म नहीं काया नहीं, नहीं विषया: रस योग हो ॥ गौ० ॥ शि० ॥ ९ ॥ शब्द रूप रस गंध नहीं, नहीं फरस नहीं वेद हो ॥ गौ० ॥ बोले नहीं चाले नहीं, मौनपणुं नहीं खेद हो | गौ० ॥ शि० ॥ १० ॥ गाम नगर तिहां कोइ नहीं, नहीं वसती न उजाड हो । गौ० ॥ काल सुगाल व नहीं, रात दिवस तिथि वार हो ॥ गौ० || शि० ॥ ११ ॥ राजा नहीं परजा नहीं, नहीं ठाकुर नहीं दास हो || गौ० ॥ मुक्तिमां गुरु चेला नहीं, नहीं लघु वडाई तास हो । गौ० ॥ शि० ॥ १२ ॥ अनंतां सुखमां झीली रह्या, अरुपी ज्योति प्रकाश हो || गौ० ॥ सहु कोइने सुख सारीखां, सघलानें अविचल वास हो || गौ० ॥ शि० ॥ १३ ॥ अनंत सिद्ध मुगतें गया, वली अनंता जाय हो || गौ० ॥ अवर जग्या रुंधे नहीं, ज्योतिमां ज्योति समाय हो ॥ गौ० शि० ॥ १४ ॥ केवलज्ञान सहित छे, केवल दर्शन खास हो ॥ गौ० ॥ खायक समकित दीपतुं, कदीय
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