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३६९ हो के सुतने शिव दीये, भणवा मत जाज्योहो के शुं कंठ सोस की ॥ २ ॥ तेडवा तुमने हो अध्यारं आवें, तो तस हणज्यो हो के पुनरपि जिम नावें ॥ शिख देइ एम हो के सुंदरी तेह तिहां, पाटी पोथीहो के अगनीमा नांखी दीया ॥ ३॥ ते वात सुणीनेहो जिनदेव बोलें इस्युं, फिटरे सुंदरीहो के काम करयु कीस्युं ॥ मुरख राख्या होके ए सर्व पुत्र तमें, नारी बोली होके नवी जाणुं अमे ॥ ४ ॥ मुरख मोटाहो के पुत्र थया ज्यारें, न दीये कन्याहो के कोइ तेहने त्यारे ॥ कंत कहे सुणज्योहोके ए करणी तुमची, वचन मांन्या हो के ते पहेला अमची ॥५॥ एम सुणीने हो के सुंदरी क्रोधे चढी, प्रीतम साथें हो के प्रेमदा अतीसे वढी ॥ कंतें मारी हो के तिहाथी काल करी, ए तुझ बेटी हो के थइ गुण मंजरी ॥६॥ पुरव भव एणे हो के ज्ञान विराधीयुं, पुस्तक बालीहो के जे करम बांधीयुं ॥ ऊदयें आव्यु हो के ए फल तास लह्यो ॥ ७॥
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