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Achar
हो नित्य नवला भोगके ॥ चार वरस साडा तथा, जिनशासन हो ए मोहोटो योगके ॥ नव० ॥ ५॥ ॥ श्री विमलदेव सान्निध्य करे, चक्केसरी हो होये तास सहाय के ॥ श्री जिनशासन सोहियें, एह करतां हो अविचल सुख थायके ॥ नव० ॥ ६॥ मंत्र तंत्र मणि उषधि, वश करवा हो शिवमणी काजके ॥ त्रिभुवन तिलक समो वडी, होये ते नर हो कहे नय कविराज के ॥ नव०॥ ७॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ श्रीपर्युषणचं स्तवन ।। ॥ आंखडीयें अमे आज शेत्रंजो दीठो रे ॥ ए देशी ॥ सुणजो साजन संत, पजुसण आव्या रे ॥ तुमें पुण्य करो पुण्यवंत, नविक मन जाव्यां रे ॥ वीर जिणेसर अतिअलवेशर ॥ वाला मारा ॥ परमे, श्वर एम बोले रे ॥ पर्वमांहे पजूसण मोहोटां, अवर न आवे तस तोले रे ॥ पजु०॥ तुमें०॥ भ० ॥१॥ चौपगमाहे जेम केशरी मोहोटो ॥ वा० ॥ खगमां गरुड ते कहिये रे ॥ नदीमांहे जेम गंगा मोहोटी, नगमां मेरु लहियें रे ॥ पजु० ॥ तु० भ०॥ २॥ भू
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