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॥ ढाल त्रीजी ॥ भोलीड़ा हंसा रे विषय न राचीये ॥ ए देशी ॥ ॥ समकित पक्ष कोइकज आदरे, क्रिया मंद अणजाण ॥ श्रेणीक प्रमुख चरित्र आगल करे, नवि माने गुरु आए || अंतरजामी रे तुं जाणे सवे ॥ १॥ कहे ते श्रेणीक नवि नाणी हुओ, नवि चारित्र प्रधान ॥ समकित गुणथी रे जिन पद पामशे, तेहज सिद्धि निदान || अंतर० ॥ २ ॥ ते नवि जाणे रे क्रिया खप विना, समकित गुण पण तास ॥ नरक तणी गति नवि छेदी शके, ए आवश्यके भाष ॥ अंतर० ॥ ३ ॥ उज्वल तारे वाणे मेलडे, सोहे पद न विशाल || तिम नवि सोहे रे समकित अविरति, बोले उपदेश माल || अंत० ॥ ४ ॥ विरति विघन पण समकित गुणवर्यो, छेदे पलीय पुहुत्त || आणंदादिक व्रत धरता कह्यो, समकित साथे रे सूत ॥ अंतर० ॥ ५॥ श्रेणिक सरिखा रे अविरति थोडला, जेह निकाचित कर्म ॥ ताणी आणे रे समकित विरतिने, ए जिन शासन मर्म ॥ अंतर० ॥ ६ ॥ ब्रम्ह प्रतिज्ञा रे विण लव सप्तमा, ब्रम्ह व्रति नहि आप ॥ अण किधा पण लागे
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