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सके, आणा गुण लव एक ॥ एम में थुणतां रे समकित दृढ करयुं, राखी आगम टेक ॥ २३ ॥ स०॥
आणा तारी रे जो में शिर धरी, तो स्युं कुमतीनुं जोर ॥ तिहां नवि पसरे रे बल विषधर तणुं, किंगारे जिहां मोर ॥ २४ ॥ स० ॥ पवित्र कीजे रे जीहा तुझ गुणे, शिर धरीए तुझ आण ॥ दिलथी कहिए रे प्रभु न विसारीए, लहीए सुजस कल्याण ॥ २५॥ स०॥
॥ ढाल ७ मी ॥ ( राग धनाश्री ) ॥ वर्तमान शासननो स्वामी, चामीकर सम देहोजी ॥वीर जिणेसर में इम थुणीओ, मन धरी धर्म स्नेहोजी ॥ एह स्तवन जे भणस्ये गुणस्ये, तस्स घर
ल माला जी ॥ समकित भाण हुस्ये चित तेहने. प्रकट झाक झमाला जी ॥१॥ अरथ एहना छे अति सुक्ष्म, ते धारो गुरु पासे जी ॥ गुरुनी सेवा करतां लहीए, अनुभव नीति अभ्यासे जी ॥ जेह बहुश्रुत गुरु गीतारथ, आगमना अनुसारी जी ॥ तेहने पूछी संशय टालो, ए हीतसीख छ सारी जी ॥ २ ॥ इंदलपुर माहि रही चोमासु, धर्मध्यान सुख पाया जी॥
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