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२९६ संवत १७३३ सत्तर तेत्रीसा वरषे, विजय दशमी मन भाया जी ॥ श्री विजयप्रभसूरी सवाया, विजयरत्न युवराया जी ॥ तस राजे भविजन हित काजे, एम में जिनगुण गाया जी ॥३॥ श्री कल्याणविजयवर वाचक, तपगच्छ गयण दिणंदा जी ॥ तास सांस श्री लाभविजय बुध, भविजन कैरव चंदा जी ॥ तास सीस श्री जीतविजय बुध,श्री नयविजय मुणिंदा जी॥ वाचक जशविजय तस सीसे, शुणिया वीर जिणंदा जी ॥४॥दोसी मूला सुत विवेकी, दोसी मेघा हेते जी ॥ एह स्तवन में कीg सुंदर, श्रुत अदर संकेते जी ॥ ए जिन गुण सुरतरुनो परिमल, अनुभवनो ते लहेस्ये जी ॥ भमर पर जे अरथी होइने, गुरु आणा शिर वरस्ये जी ॥ ५॥ इति ॥ ॥ श्रीमद् यशौविजयजी कृत श्री मंधर स्वामीनु निश्चय व्यवहा
रनुं च्यार ढालनु स्तवन ॥
॥ ढाळ पहेली ॥ ॥श्री समिधर साहिब आगे विनति रे, मन धरी निर्मल भावाकीजे रे कीजे रे,लीजे लाहो भव तणो रे
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