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पणे एकान्त स्थानके स्थापवो, डांगरनी ढगली उपर स्थापवो, ते कुंभ उपर एक श्रीफल मुकवू, अने आगळ चोखाना स्वातिक करवो, ते घडामां शक्ति होय तो हमेश रुपा नाणुं नांखवू, नहितो पहेले दिवसे तथा छेल्ले दीवसे रुपानाणुं नाखवू, वचला दीवसोमां यथा शक्ति नाखवू पण हमेश कुंभमां नाणुं तो नाखवू ज जोइये, तिहां ज्ञान बांधवू, एक पीठिका उपर कल्पसूत्रनुं पुस्तक पधरावq पुस्तक उपर चन्द्रवो बांधवो, धूप दीप करवो, अने ते दीपक अखंड राखवो जोईए.॥
॥ प्रथम इरिया वही प्रतिक्रमवा, तस्स उत्तरी कहेवी पछी एक लोगस्सनो काउसग्ग करवो, पछी प्रगट लोगस्स कहेबो, पछी “अक्षयनिधि तप आराधवा चैत्यवन्दन करूं' एम कही अक्षय निधिचैत्यवन्दन करवू, पछी नमुथ्थुणं-जावंति चेइआइंजावंत केविसाहु-पछी नमोऽहत्-पछी स्तवन अक्षयनिधिनुं कहे, पछी जयवीयराय कहेवां, पछी खमासमण देइ, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् श्री श्रुतदेवता आराधनार्थ करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ, एक
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