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करी, पछी गुरु " सुयदेवयानी थोयं" कहे, पछी पच्चखाण करवां पछी पूजानी ढाल कहेवी ॥
॥ पूजानी ढाल ||
॥ हा ॥ सप्तमपद श्रीज्ञाननुं, सिद्ध चउपद मांही ॥ आराधीजे शुभमने, दिन दिन अधिक उच्छाह ॥ १ ॥
॥ छंद गाथा ॥ अन्नाणसम्मोहतमो हरस्स || नमो नमो नाणंदिवायरस्य ॥ पचप्पयार रसुवगारगस्स, सत्ताण सव्वथ्य पयासगस्य ॥ १ ॥ हुंबे जेहथी सर्व अज्ञानरोधो, जिनादीश्वर प्रोक्त अर्थाविवोधो ॥ मति आदि पंचप्रकारे प्रसिद्धो, जगद्भासते सर्व दैवाविरुद्धो ॥ २ ॥ यदीयप्रभावे सुभक्ष्यमभक्ष्यं, सुपेयं अपेयं सुकृत्यं अकृत्यं ॥ जेने जाणीये लोक मध्ये सुनाणं, सदा मे विशुद्धं तदेव प्रमाणं ॥ ३ ॥
|| ढाल ॥ भव्य नमो गुण ज्ञानने, स्वपर प्रकाशक भावेजी ॥ पर्याय धर्म अनंतता, नेदाभेद स्वभावेज || चाल || जे मुख्य परिणति सकल ज्ञायक, बोध भाव विलच्छना ॥ मति आदि पंच प्रकार नि
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