________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५३
उत्पादादिक पूर्व जे, सुत्र अर्थ एक सार ॥ विद्यामंत्र तो को, पूर्वश्रुत जंडार ॥ श्रीश्रुत० ॥ १९ ॥ बिंदुसार लगे भणे, तेहिज पूर्व समास ॥ श्रीशुभ वीरने शासने, होज्यो ज्ञान प्रकाश ॥ श्री० ॥ २० ॥ इति अक्षयनिधि तप खमासमण विधि दुहा समाप्त || || श्री सीमन्धरस्वामीनुं स्तवन ॥
॥ श्री सीमंधरस्वामीजी, जीवन जगदाधार ॥ वहाला सुणो एक विनति, मारा प्राण आधार ॥ प्रभुजी मानीए महाराज ॥ १ ॥ हियडु ते मुज हे जालुओ, संशय भर्या उभराय ॥ एक पलक धीरज नवी धरी, कहुं कवण आगल जाय || प्रभु० ॥ २ ॥ क्षण क्षण मनोरथ नवनवा, उपजे ते मनडामांहि ॥ फीरी ते मनमां वीरमे, कांइ जेम कुवानी छांहि ॥ ॥ प्र० ॥ ३ ॥ एक घडी अथवा अधघमी, जो प्रभु मले एकांत ॥ तो वात सवी मननी कहुं, भांजो ते सघली भ्रांत ॥ प्र० ॥ ४ ॥ भले सरज्यां पखेरुआं, मन चिंतवे तिहां जाय ॥ माणसने न सरजी पांखड), ली रधुं मन अकलाय ॥ प्र० ॥ ५ ॥ कुण मित्र
For Private And Personal Use Only