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२४९ मल, सिद्ध साधन लच्छना ॥ स्याद्वादसंगी तत्त्वरंगी प्रथम नेदानेदता, सविकल्पने आविकल्प वस्तु, सकल संशय छेदता ॥
॥ ढाल ॥ लक्षाभद न जे विण लहीए, पेय अपेय विचार ॥ कृत्य अकृत्य न जेविण लहीए, ज्ञान ते सकल आधाररे ॥ भ० सिद्ध ॥ १ ॥ प्रथम ज्ञानने पछी अहिंसा, श्रीसिद्धांते जाख्यु ॥ ज्ञानने वंदों ज्ञान मनिंदो, ज्ञानीए शिव सुख चाख्युरे ॥ भ० ॥ २॥ सकल क्रियानु मुल जे श्रद्धा, तेह- मुल जे कहिए ॥ तेह ज्ञान नित्य नित्य वंदीजे, ते विण कहो किम रहीएरे ॥ भ० ॥३॥ पंच ज्ञानमांहे जेह सदागम, स्वपर प्रकाशक जेह ॥ दिपक परे त्रिभुवन उपगारी, वली जेम रवि शशी मेहरे ॥ भ० ॥ ४ ॥ लोक उर्ध्व अधो तिर्यग ज्योतिष, वैमानिकने सिद्ध ॥ लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, ते ज्ञान मुज शुद्धिरे । ॥ भ०॥५॥
॥ ढाल ।। ज्ञानावरणीय जे कर्म छे, दय उपशम तस थायरे ॥ तो होय एहिज आत्मा, ज्ञान
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