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ર૪૦ पोरसी हो, वर्ष एक हजार के, आयु ते साठपोरसी हरे ॥५॥ एक लाख हो पुरिमल हरंतके, एकासण दस लाखनुं॥ नीवी करतां हो एक क्रोड कपायके, एकलठाणा दस क्रोडर्नु॥६॥ कापे सो क्रोड हो वर्ष एकलदातिके, हजार कोम वरस आंबिले ॥ उपवासे हो दस सहस क्रोमके, नरक आयुषतुं कापले ॥ ७ ॥ ए वाख्या हो मध्यम फल जाण के, केवल लहे उत्कृष्टथी ॥ दस धारो हो ए असि सूर्य हासके, मुष्टि ज्ञाने ग्रही मुष्टिथी ॥ ८॥ नमो तवस्सहो गणो दोय हजारके, खमासमणा बार छे, गणो लोगस्स हो बार काउस्सग रुपके, साचो कर्म कुठार छे ॥९॥ यथा शक्ति हो करो तप अनुकुलके, संयम श्रेणी आदरो॥ तप वर्द्धमान हो वर्द्धमान परिमाणके, धर्म रत्न पद अनुसरो ॥ १० ॥ इति वर्द्धमान तप सज्जाय.॥
॥ अथ अक्षयनिधि तपनो विधि.॥ ॥श्रावण वद चोथने दिवसे प्रारंभ करवो, प्रथम एक कुंभ सुवर्णनो अथवा रत्ननो जडीत शक्ति प्रमाणे करवो, जण दिठ भिन्न भिन्न करवा, ते कुंभ पवित्र
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