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हमणां प्राण हणशे तुमारा ॥ ओ आवे जिन नेम कुमारा, कर कांइ तु आतम सारा ॥१॥ हरणो कहे सहको खेम, अति अपराधे म हणे नेम ॥ विण अव. गुण प्रभु किमे न मारे, हरणो वचन वदे तिणवारे ॥ ॥२॥ हुं न करूं परकेरी आश, जई जंगलमा पुरु वास ॥ पर्वत पाणी चरि घास, नवी ठाकुर नही कही दास ॥ ३ ॥ विण अपराधे मृग न मारे, ते नर भमशे गति जो च्यारे ॥वात करे नर पशअ पोकारे, शब्द सुणीने आप विचारे ॥४॥जो परj तो पशुं हणाय, मुज अनुकंपा नाठी जाय !! भोग भोगवी कुण दुखी. यो थाय, नेमनाथ रथ फेरी जाय ॥ ५॥ वरस दिवस जे दीधुं दान, सहस पुरुष शुं संयम ध्यान । चोपम दिन छद्मस्था मान, नेमे पाम्युं केवल ज्ञान ॥६||
॥ ढाल ॥ ५॥ राजीमती तो पुंठे जाय, नेम विना दुख सबलो थायाकहे कंथ मुज अवगुणी, नीर विना किम रहे पोयणी ॥ १॥ अष्ट भवंतर आगे नेह, तो किम आपे हमणां छेह ॥ स्वामी कठिन हृदय मम करो, परणवाने पाछा वलो ॥२॥ इस्यां वचन
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