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सुविशेषेरे ॥ काल प्रमाणे खपकरे, दूषण टलतां देखेरे ॥ गु०॥७॥ कुख्खी संबल जे कह्यां, सान्निध्य केम ही न राखेरे ॥ दे उपदेश यथास्थिते, सत्य वचन मुख भाखरे ॥ गु०॥८॥ तन मेला मन उजळां, तप करी खीणी देहीरे॥ बंधन बे छेदी करी, विचरे जन निःस्नेहीरे ॥ गु० ॥ ९ ॥ एहवा गुरु जोई करी, आदरीये शुभ भावरे ॥ बीजुं तत्त्व सुगुरु तणुं, ए जिनहर्ष कहावेरे । गु०॥१०॥
॥ ढाल ॥ ८ ॥ कर्मन छुटे रे प्राणिया ॥ ए देशी॥
॥ भवसायर तरवा भणी, धर्म करे हो सारंभ। पथ्थर नावे रे बेसीने, तरवो समुद्र दुरलंभ ॥ भ० ॥ ॥१॥ आपे गोकुल गायनां, आपे कन्या रे दान । आपे क्षेत्र पुण्यार्थे, ब्रामणने देई मान ॥ भ० ॥२॥
टावे धाणी वली, पृथ्वीदान सुप्रेम, गोला कलशारे मोरिया, आपे हल तिल हेम ॥भ०॥३॥ वली खणावेरे खंतशू, कूआ सुंदर वाव ॥ पुष्करिणी करणी नली, सरोवर सखर तलाव ॥ भ०॥४॥ कंद मूल मूके नहीं, अगीआरसने हो दीस ॥ आरंभ ते दिन अति
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