Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
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लेकर चूर्ण करें फिर उसमें सबके बराबर गोमूत्र । (२९७०) देवदार्वादिचूर्णम् (१) मिलाकर पकावें । जब गोमूत्र जल जाय तो उस (वृ. नि. र.; बं. से; यो. र. । कास.) चूर्णको हाण्डीमें बन्द करके या कढ़ाहीमें भस्म | देवदारुबलारास्नात्रिफलाव्योषपचकैः । करलें।
सविडो सितातुल्यैस्तच्चूर्ण सर्वकासनुद्॥ ___ इस क्षारको सेवन करनेसे बल वर्ण और अग्नि | देवदार, खरैटी, रास्ना, हर्र, बहेड़ा, आमला, बढ़ते है । (मात्रा-१ माशा। अनुपान-तक्र।) सांठ, मिर्च, पीपल, पद्माक और बायबिडंग १-१ (२९६८) दुरालभायं चूर्णम्
भाग तथा खांड सबके बराबर लेकर चूर्ण बनावें । (ग. नि. । कासा; ग. नि.। परिशिष्ट. 'चूर्णा. इसके सेवनसे हर प्रकारकी खांसी नष्ट हो जाती है। वा. भ. । चि. अ. ३; च. सं. । चि. अ. २२) (मात्रा ३-४ माशे। शहदमें चाटें।) दुरालभां शनवरं शठी द्राक्षां सितोपलाम् ।। (२९७१) देवदाादिचूर्णम् (२) लिखाकर्कटङ्गीं च कासे तैलेन वातजे ॥
(ग. नि. । श्वयथु.) धमासा, सोंठ, शटी (कचूर), मुनक्का (दाख) देवदारुढेषोऽशमन्तो विश्वा कृष्णा कुरण्टकः । काकड़ासींगी और मिश्री समान भाग लेकर चूर्ण | रिङ्गणी चूर्णमेतेषां दना पीतं च शोफत् ॥ बनावें । इसे तेलमें मिलाकर चाटनेसे वातज खांसी देवदार, बांसा, पत्थरचटा, सांठ, पीपल, नष्ट होती है।
पियाबांसा और कटेली समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। ( मात्रा २-३ माशे । दिन भरमें ३-४ ___इसे दहीके साथ पीनेसे शोथ नष्ट होता है। बार चाटें ।)
( मात्रा-१ से ३ माशे तक) (२९६९) दुःस्पर्शादिचूर्णम्
(२९७२) देवदार्वादिचूर्णम् (३) (च. सं. । चि. अ. २२)
(ग. नि.; वं. से. । कासा.) दुःस्पी पिप्पली मुस्तै भार्गी कर्फटकी शठीम् । देवदारुशठीरास्नाशृङ्गीधन्वयवासकम् । पुराणगुडतैलाभ्यां चूर्णितं वापि लेहयेत् ॥ तैलक्षौद्रयुतं लिह्याच्लेष्मकासे सुदारुणे॥
धमासा, पीपल, नागरमोथा, भारंगी, काकड़ा देवदारु, कचूर, रास्ना, काकड़ासिंगी और सिंगी, और शठी (कचूर) समान भाग लेकर चूर्ण धमासा समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। करें । इसे पुराने गुड़ और तेलमें मिलाकर चाटनेसे इसे तैल और शहदमें मिलाकर चाटनेसे भयवातज खांसी नष्ट होती है।
कर कफज खांसी भी नष्ट हो जाती है। नोट-गुड़ सबके बराबर लेना चाहिए। (२९७३) देवदार्यादिचूर्णम् (४) मात्रा ३ माशे । ६ माशे तेलमें मिलाकर चाटें। (वा. भ. । चि. अ. ११) दिन भरमें २-३ मात्रा खानी चाहिये । । देवदारं घनं मूर्वी यष्टीमधुं हरीतकीम् ।
१-२ शिलातुत्थमिति पामन्तरम् ।
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