________________
यतनी
१०६. चक्षु इंद्री नों विषय पिछाण, उच्छेद - अंगुल करि जाण । लाख योजन जाझो कहिवाय, ए सूत्र तणों है न्याय ॥ १०७. तेणें लाख योजन ना कहीस, प्रमाण योजन शत जगीस | आठ सौ नै अल्सी पहिछाण, चंद प्रमाण योजन माण | १०. तेही प्रत्यक्ष प्रमाण चंद दीसे सुविहान किहां शत योजन कहिये, किहां आठसौ अस्सी लहियै ॥ १०६. इत्यादिक प्रमाण मांय, अंतर देखी अधिकाय । मन शंका आण कोय, तसुं उत्तर आगल जोय ॥
११०. एक लक्ष योजन कर वेत्रिय, ते आधी चक्षु विषय छे। चंद सूर्य तो तसुं कांतिना प्रभाव भी दो अ १११. बीजूं सही जे कृत पदारथ, कोश सय ने
ऊपरै ।
कोइ नगरकोट नर रुख छै ते, दोसतुं नहि इणि परे ॥ ११२. विषय चक्षु नों को अप्रकाश वस्तु स्वभाव है। ते भणो दीस रवि शशि तसुं क्रांति नों प्रभाव है ।
पतनी
देख ।
वाण ॥
११३. तथा पमाणंतरेहि पेख, सूर्य आठसौ योजन समभूतला थी पहिछाण, ए सूत्र तणी छे ११४. उगतो सगले मोटो दीर्स, मध्पाने नान्हों होस । जब नान्हो विमान स्यूं होय ? ही शंका राम्रै कोय ।। गृहवी
११५.
११५.
११७.
११८.
११६.
1
* ऊगतो आश्रमतो रवि, दूर थी दीसं अछे । सहस्र संतालीस देसी त्रेसठ योजन जेह छे । मध्यानं आठ सौ योजन दीसतुं एनिकट छे। कडा मार्ट तेज बहू विण करी जघु दी अछे ।
दूहा
अर्थ तेर अंतर तणो, धर्मसीह कियो जेह | कितलोकस्यां मांहिलो, आयो यहां तेह || बिहाइक वृति की कहा कि अपर सुन्वाय । अवलोकन करने अस्यं जागे बहुत ताय ॥
"
* णाणंतरे ? दसणतरे २ चरितंतरे ३ लिंगंतरे ४ । पवणंतरे ५ गाणंतरे ६ कप्यंतरे ७ मगंतरे ॥
लय-पूज मोटा भांज टोटा
११ = भगवती-जोड़
Jain Education International
११२, १२० गोपमा तेहितेहि नाणंतरेहि, तह परिसंतरेह नियंतरेहि पचवतरेहि पाचवणंतरेहि,
For Private & Personal Use Only
21
www.jainelibrary.org