Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 461
________________ जिनकल्पिक- - विशेष साधना के लिए संघ से अलग रहकर साधना करने वाले मुनि जीवठाण - गुणस्थान, आत्मा की क्रमिक विशुद्धि की भूमिका थीणोदी- दर्शनावरणीय कर्म के प्रबल उदय से आने वाली जीवास्तिका (जीवास्ति) जीव सघन निद्रा, जिसमें व्यक्ति किसी के साथ लड़ाई कर, उसे मारकर पुनः सो जाता है, पर उसे यह सब ज्ञात नहीं होता जुगंतर बैल के कंधों पर रखे जाने वाले जुए जितना या शरीर प्रमाण भूभाग थोत्र सात उच्छ्वास जितना कालमान जुगलिया - यौगलिक युग के मनुष्य, जो युगल रूप में उत्पन्न होते हैं जोग (योग) - अप्राप्त की प्राप्ति जोग - मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति ज्योतिपी-देवों की एक जाति झूसर- जुआ, जो बैल के कन्धों पर रखा जाता है ठियकल्प ठियकल्पी । गवरं (नवरं ) भिन्नता-सूचक अध्यय तदुभयागम -- सूत्र - आगम और अर्थ आगम का समन्वित रूप दुर्लभ बोध - जिस जीव को सम्यक्त्व की प्राप्ति बहुत तप कर्म शरीर को तपाने वाला अनुष्ठान तावतीसग— इन्द्र के गुरु स्थानीय या मित्र स्थानीय देव तिरिक्ध (नियं) पशु, पक्षी, कीट, पतंग, वृल, जलव निगोद आदि के जीव, ये एक इन्द्रिय वाले जीवों से लेकर पांच इंद्रिय वाले जीवों तक होते हैं। मुश्किल से हो दुवालस भक्त देश-वस्तु का काल्पनिक अंश देशव्रती - श्रावक देशसंवती- श्रावक तीर्थ प्रवचन, साधु, साध्वी श्रावक और श्राविका रूप देसूण-कुछ कम } देखें स्थितकल्पिक चतुविध धर्मसंघ तीर्थंकर - अर्हत्, धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले तीर्थान्तरीय-अन्यतीर्थिक तेइंद्री - तीन इन्द्रिय वाले जीव ते उकाय अग्नि के जीव तेजसशरीर तेजोमय शरीर, जो पाचन और कांति में सहायक है तेजुलब्धि-- तेजोलेश्या तेजोलेश्या - तपोविशेष से उपलब्ध अनुग्रह और निग्रह में सक्षम तेजोमय शक्ति श्रंस त्रिकोण त्रस सोद्देश्य गमन करने की क्षमता रखने वाले जीव त्रिकरण करना, करवाना और अनुमोदन करना अथवा ४२८ भगवती जोड़ Jain Education International मन, वचन और काया दंडक - जहां प्राणी अपने कृत कर्मों का दंड भोगते हैं, वे नरक आदि चौबीस स्थानों में विभक्त हैं। दर्शन सामान्य अवबोध दर्शन प्रतिमा -- श्रावक की ग्यारह भूमिकाओं में से पहली का नाम दर्शन प्रतिमा है। दर्शन मोहनीय दृष्टि को विपरीत करने वाला मोह कर्म दर्शनावरणीय (कर्म) - दर्शन - सामान्य अवबोध में बाधा पहुंचाने वाला कर्म दशम भक्त- -चार दिन का उपवास दात - एक बार में अविच्छिन्न रूप से प्राप्त होने वाला भोजन या पानी -- -पांच दिन का उपवास द्रव्य - मूल वस्तु द्रव्यनय - नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र नय द्रव्य निक्षेप जो पर्याय अतीत हो गई या भविष्य में होगी उस अपेक्षा से वर्तमान में उसका उस पर्याय के द्वारा कथन करना अथवा अनुपयुक्त अवस्था की क्रिया द्रव्य मंगल- -लौकिक मंगल, जैसे- मंगल दीप जलाना द्रव्य श्रुत - पुस्तकारूढ़ शास्त्र आदि द्रव्य हिंसा-साधना के प्रति पूर्ण जागरूक संयमी द्वारा अप्रत्याशित रूप से होने वाला प्राणवध द्रव्यानुयोग -- तत्त्ववाद का निरूपण करने वाले आगम भगवती आदि द्रव्यार्थिक नय - नैगम, संग्रह और व्यवहार नय द्रव्यास्तिकाय - वह द्रव्य, जिसके प्रदेशों का प्रचय होता है, तिर्यक् सामान्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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