Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 467
________________ स्थविरकल्प-संघबद्ध साधना करने वाले मुनियों का आचार स्नातक-केवल ज्ञान प्राप्त करने वाला निर्ग्रन्थ स्थविरकल्पिक-संघबद्ध साधना करने वाले मुनि स्नेह-सूक्ष्म अप्काय स्थावर-सलक्ष्य गमनागमन नहीं कर सकने वाला प्राणी स्नेहकाय-स्निग्धता स्याद्वाद-अनन्त धर्मात्मक वस्तु के सापेक्ष प्रतिपादन की स्थितकल्पिक-प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के शिष्य. पद्धति जिनके लिए आचेलक्य आदि दसों कल्प अनिवार्य होते स्वयंबुद्ध-किसी निमित्त या उपदेश के बिना स्वयं बोधि हैं (देखें ठाणं पृ०७०२) प्राप्त करने वाला स्थितिघात-कर्मों की स्थिति का अल्पीकरण हरस-अर्स, बवासीर स्थितिबंध-कर्मों का आत्मा के साथ बंधे रहने का काल- हुंडक-सबसे निम्न कोटि का संस्थान मान हेय-छोड़ने योग्य ४३४ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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