Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 466
________________ संजती (संयती)-मुनि सराग संजती-छद्मस्थ मुनि संज्ञा-आसक्ति विशेष सराग संजम---रागयुक्त संयम संपराय—सकषायी जीवों के होने वाला वेदनीय कर्म का सरागी--रागयुक्त चेतना वाला व्यक्ति, कषायवान् बन्ध सर्वज्ञ-केवली संप्रदाय--परम्परा सर्वविरत–तीन करण तीन योग से सावध योग का प्रत्यासंलेखणा-अनशन का पूर्वाभ्यास ख्यान संवर-कर्म निरोध करने वाले आत्म परिणाम सलेसी-तेरहवें गुणस्थान तक के जीव संवेग-मुमुक्षा सहत्थपारितावणिया--अपने हाथ से स्वयं को या दूसरे को संस्थान-(संठाण)---आकार ___ कष्ट पहुंचाना सकरणवीर्य-क्रियात्मक शक्ति सहसंबुद्ध-देखें स्वयंवुद्ध सकषाइ-राग-द्वेष युक्त जीव सहित—प्रयत्नशील सचित्त-जीवसहित सागर-उपमा के द्वारा निर्धारित कालमान सचित्त द्रव्य-जीव सहित पदार्थ सागार (उपयोग)--ज्ञान सजोगी-मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति करने वाला सागारोवउत्त—जिसकी ज्ञान चेतना जागृत हो जीव साठभक्त--तीस दिन का तप सझाय-स्वाध्याय, मर्यादापूर्वक अध्ययन सातवेदनी-सुख की अनुभूति देने वाला कर्म सण्णि-समनस्क,सम्यक्त्वी सातिचार–सदोष सण्णिभूत-पर्याप्त सामानिक-इन्द्र के समान ऋद्धि वाले देव सन्निधि-घी आदि अधिक समय न टिकने वाले खाद्य सामायिक-आवश्यक सूत्र का एक विभाग पदार्थों का संग्रह सामायिक चारित्र--सब प्रकार की सपाप प्रवृत्तियों का सप्पडिकम्म–सपरिकर्म, वह अनुष्ठान जिसमें शरीर की परित्याग । सार-संभाल की जाती है सामायिक प्रतिमा--समता और व्रताराधना का विशेष समचउरंससठाण (समचतुरस्र संस्थान)-ऐसा संस्थान प्रयोग जिसके चारों कोण सम हों सावज्ज-पापसहित समदृष्टि-सम्यक्त्वी सास्वादन-उपशम सम्यक्त्व से गिरते समय मिथ्यात्व का समभिरूढ--पर्यायवाची शब्दों में निरुक्त के भेद से अर्थभेद स्पर्श करने से पहले अन्तरालवर्ती सम्यक्त्व का स्वीकार करने वाले नय का अभिमत साहरण-गर्भस्थ जीव का स्थानान्तरण समवसरण-तीर्थकरों का प्रवचन मंडप सिद्ध-मुक्त जीव, जिसके सब प्रयोजन सिद्ध हो गये हों समाचारी--संघीय जीवन की विशेष चर्या सुभ जोग-मन, वचन और शरीर की सत्प्रवृत्ति समामिथ्या (मिच्छा) दृष्टि-थावक सुलभबोधि—जिस जीव को सम्यक्त्व सुलभ हो समुच्छिन्नक्रिय-शुक्ल ध्यान का एक प्रकार सुसम दुस्समा—अवसर्पिणी काल का तीसरा आरा समुदाणिक (सामुदानिक) भिक्षा-ऊंच-नीच के भेदभाव सूक्ष्मसम्पराय-दसवें गुणस्थान का चारित्र बिना अनेक घरों से की जाने वाली भिक्षा सूझतो—मुनि के लिए कल्पनीय समुद्घात–तीव्र वेदना आदि में एक रस होने के कारण सूत्रागम-गणधरों द्वारा सूत्र रूप में ग्रथित आगम आत्म प्रदेशों में होने वाला एक प्रकार का विस्फोट सेज्या-मकान समुच्छिम-जन्म का एक प्रकार, गर्भ और उपपात के स्कन्ध--अखण्ड वस्तु या परमाणुओं का एकीभाव बिना एक विशेष पर्यावरण के कारण होने वाला जन्म स्त्रीवेद-पुरुष के प्रति स्त्री की अभिलाषा समुच्छिम विकलेंद्री-दो, तीन और चार इन्द्रिय वाले स्थविर–संयम में स्थिर करने वाले मुनि । ये कई प्रकार जीव सम्यक् दर्शन–सही दृष्टिकोण के होते हैं-प्रव्रज्या स्थविर, श्रुत स्थविर, जाति स्थविर सराग-तप-छद्मस्थ का तप आदि परिशिष्ट ४३३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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