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बालपणुं-मिथ्यात्व
मनपर्यवज्ञानी-मनःपर्यव ज्ञान प्राप्त करने वाला मुनि बालमरण---असंयमी का मरण
मन-समित-मन का सम्यक् प्रयोग करने वाला मुनि बाल वीर्य-असंयमी का वीर्य
मनोगुप्त-मन को गुप्त करने वाला मुनि बुद्धबोधित-तीर्थकरों द्वारा बोधि प्राप्त करने वाला मरणांतिकी (समुद्घात)--मृत्यु के समय होने वाला समुद्बेइन्द्री—दो इन्द्रिय वाले जीव
घात
महाव्रत-हिंसा, असत्य आदि का सम्पूर्ण परित्याग भजना-वैकल्पिक रूप से
माया-मायाकषाय के निमित्त से लगने वाला कर्म भत्तपचखान--आहार परित्याग
माया मोसा--माया युक्त मृषा भवक्षय-वर्तमान भव का सर्वथा विनाश
मायी-कषाय युक्त भवधारिणी-देव, नरक आदि चार गतियों में प्राप्त होने मार्दव-कोमलता वाला सहज शरीर
मासखमण-एक मास का निरन्तर उपवास भवनपति-असुर आदि अधोलोक में रहने वाले देव मासद्ध-पन्द्रह दिन का समय भवसिद्धिय-मोक्षगमन योग्य भव्य जीव
मिच्छा दंसण सल्य-अठारहवां पाप भविक-शरीर.....भविष्य में ज्ञाता होगा, पर वह वर्तमान में मिच्छादिट्ठ-मिथ्यात्वी
विवक्षित तत्त्व को नहीं जानता है उसका शरीर मिच्छामि दुक्कडं--प्रायश्चित्त का एक प्रकार भव्य---मोक्षगामी जीव
मिथ्यात्व (त)-दृष्टिकोण का विपर्यास भाजन-पात्र
मिथ्यादर्शन-दृष्टि का मिथ्यात्व, विपरीत दृष्टिकोण भाव-अवस्था
मिथ्यादर्शन (क्रिया)--मिथ्यात्व के निमित्त से होने वाला भाव नय-पर्यायाथिक नय-शब्द, समभिरूढऔर एवंभूत- बन्धन नय ये तीन नय
मिथ्यादर्शन सल्ल-अठारहवां पाप भाव मंगल-लोकोत्तर मंगल, नमस्कार महामंत्र आदि मिथकाल----सात नरक भूमियों में से एक जीव वहां से भाव लेश्या-अध्यवसाय विशेष
निकलकर पुनः वहां उत्पन्न होता है तब तक पूर्ववर्ती भावश्रुत-शास्त्र आदि के द्वारा होने वाला ज्ञान
अधिकांश जीव वहां से निकल जाते हैं पर कुछ बच जाते भाव हिंसा-आत्मा की प्रमाद और कषाय युक्त प्रवृत्ति भावितात्मा-तपस्या और संयम से आत्मा को भावित करने मिथ दृष्टि-सम्यक्मिथ्यावृष्टि वाला मुनि
मुक्ति---सम्पूर्ण कर्मों के क्षय से होने वाली आत्मा की भावेन्द्रिय-इन्द्रियों की उपलब्धि और उनका व्यापार अवस्था भाषा समित-बोलने में विवेक रखने वाला मुनि
मुखवस्त्रिका—मुख्य वस्त्र भासक--बोलने वाला
मुहूर्त-४८ मिनिट का कालमान भिक्खू पडिमा—साधु द्वारा स्वीकृत प्रतिज्ञा विशेष मूल गुण-साधना के मूलभूत गुण, पांच महाव्रत भेद-समावन्न-मति भंग, किंकर्तव्यविमूढ़
मोक्ष-सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने पर आत्मा का अपने
स्वरूप में अवस्थान मडाई-निर्ग्रन्थ--अचित्त भोजी, याचित भोजी
मोहनीय----आत्मा में मूढ़ता पैदा करने वाला कर्म मति-अज्ञान-मिथ्यादृष्टि का इन्द्रिय और मन के द्वारा होने वाला ज्ञान
यथालंदकल्पिक-हाथ की रेखा सुखे उतने समय भी प्रमाद मति-ज्ञान-सम्यक् दृष्टि का इन्द्रिय और मन के द्वारा होने नहीं करने वाले मुनि
वाला ज्ञान मन जोगी-मन की प्रवृत्ति करने वाला
रति-अरति-असंयम में अनुराग और संयम से वितृष्णा मनपज्जव-संज्ञी जीवों के मानसिक भावों को जानने वाला रसघात--तीव्र रस से बंधे हुए कर्मों को मन्द रस वाले बना अतीन्द्रिय ज्ञान
देना
परिशिष्ट ४३१
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