Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 462
________________ द्रव्येन्द्रिय- इन्द्रियों की बाह्य और भीतरी संरचना तथा उनकी पौगलिक क्षमता द्वादशांग आयारो आदि जैन आगम धर्म-आत्मशुद्धि का साधन धर्मकथानुयोग - कथाओं के माध्यम से धर्म की व्याख्या करने वाले आगम ज्ञाताधर्मकथा आदि धर्मास्तिकाय - गति सहायक तत्त्व धारणा निर्णयात्मक ज्ञान का स्थिरीकर धूम - साधु के भोजन का एक दोष, खाद्य की निन्दा करते हुए भोजन करना नयः - अनन्त धर्मात्मक वस्तु के किसी एक अंश का सापेक्ष पंडितपणु-साधुत्व ग्रहण करने वाला अभिमत नाणत्त विविधता नाम - चारों गतियों में भांति-भांति की अवस्थाओं को प्राप्त करने में हेतुभूत कर्मपुद्गल नाम निक्षेप-- किसी भी व्यक्ति या पदार्थ का गुण निरपेक्ष नरक --चार गतियों में एक गति, जहां नारक जीव रहते पंडितवीर्य-संयमी पुरुषों की शक्ति पक्ष-पन्द्रह दिन का समय निगमन वच -- उपसंहार विशेष निगोद–अनन्तावि वनस्पति जीन पछेवड़ी प्रच्छादनगडी, साधुओं का उत्तरीय पडवादिक प्रतिपदा ( एकम) आदि पडिकमण अतिचारों की आलोचना के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान नामकरण पडिमाधारी श्रावक ग्यारह उपासक प्रतिमाओं को वहन करने वाला श्रावक निकाचन-कर्मों का प्रगाढ़ बंधन निकाचित-निधत्त - घनीभूत किए हुए कर्म पुद्गलों को पडिलेहण - वस्त्र पात्र आदि को शास्त्रोक्त विधि से देखना और अधिक सघन करना पडिसेवी-दोष का सेवन करने वाला पद्मश्या-थलेश्या का एक प्रकार परउत्थिक—परतीर्थिक, अन्य मतावलम्बी करना निदान ( नियाणा ) -- पौद्गलिक सुख की आकांक्षा से साधना के फलादान रूप में किया जाने वाला संकल्प निधत्त - बिखरे हुए कर्म पुद्गलों को घनीभूत करना निपठो निर्वन्ध मुनि नियमा निश्चित रूप से निरतिचार-दोष रहित निरवद पाप र निग्रंथ-प्रवचन - अर्हतों की वाणी निर्ग्रन्थ- वीतराग निर्जरा निहारिम- उपाश्रय या ऐसे ही किसी स्थान में अनशन करना जहां से शव को बाहर निकालना पड़े नूम माया नेगम-भेद और अनेद दोनों को ग्रहण करने वाला अभि मन नेरइय-नरक के जीव नोइंदियमन निज्जर - आत्म-प्रदेशों से बंधे हुए कर्मों को आत्मा से दूर पर-परिवाद - दूसरों की निंदा पओग (पओगसा ) - प्रयत्नजन्य पंचक-पांच क्रूर ग्रहों की संज्ञा पंचजाम - पांच महाव्रत पंडित - संयमी -रहित Jain Education International - तपस्या और उससे होने वाली आत्मा की आंशिक उज्ज्वलता निश्चय नय - तात्विक अर्थ का कथन करने वाला अभिमत पंडित मरण - ज्ञानी या संयमी का समाधिपूर्ण मरण परम अवधि-- चरम कोटि का अवधि ज्ञान परमाणु - पुद्गल की सर्व सूक्ष्म इकाई परमेष्ठि- अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनिकहलाते हैं पंच परमे परहृत्थपारितावणिया — दूसरे के हाथ से स्वयं या दूसरे को कष्ट पहुंचाना परारंभा - दूसरे की हिंसा करने वाला परिग्रह-पदार्थ-संग्रह, पदार्थ के प्रति होने वाला ममत्र परिचारणा-संभोग परिठावणिया समिति - साधुओं की मल विसर्जन की क्रिया परिणामिय भाव-काल-परिणमन से होने वाली जीवअजीव आदि की अवस्था परितावणिया (परितापना ) जीव को बांधकर परितापना परिशिष्ट ४२६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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