Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 363
________________ १३. एहवा तप करि सूखो भूखो, जाव चर्म बीटयां नाडो। छै मुझ उठाण कम्म बल वीर्य, यावत् पराक्रम पुरुषाकारो।। १४. तावत श्रेय अछै मुझ कल्पे, जाव ज्वलंत सूर्य उदयेहो। तामलिप्त नगरी रै मांहि, देखी बोलाव्या तेहो।। १५. अथवा पाखण्ड मांहि रह्या जे, गृह में अथवा रहायो। गृहस्थ थका हुंता मुझ मित्र, दीक्षा लियां पछै हुवा ताह्यो।। १६. दीक्षा ना पर्याय करी सरिखा, साथ भण्या सुखदायो। ते सहु नै पूछी प्रभाते, तामली बीचै थइ ताह्यो ।। १७. पादुका कुंडिका प्रमुख उपकरण, काष्ठपात्र बलि जाणो। ए सहु नै एकांत न्हाखी नै, तामलिप्ति थी ईशाणो ।। १३. तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे जाव धमणिसंतए जाए, तं अत्थि जा मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे १४. तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उठ्ठि यम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते तामलित्तीए नगरीए दिट्ठाभट्ठे य 'दिट्ठा भट्टे य' त्ति दृष्टाभाषितान् । (व०-प० १६७) १५. पासंडत्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिए य परियाय संगतिए य 'पुव्वसंगतिए' त्ति पूर्वसंगतिकान् गृहस्थत्वे परिचितान् । (वृ०-प०१६७) १६. आपुच्छित्ता तामलित्तीए नगरीए मझमज्झेणं निग्गच्छित्ता १७. पादुग-कुंडिय-मादीयं उवगरणं दारुमयं च पडिग्गहगं एगते एडित्ता तामलित्तीए नगरीए उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए १८. णियत्तणिय-मंडलं आलिहित्ता सलेहणाझूसणा झूसि यस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स निवर्तन-क्षेत्रमानविशेषस्तत्परिमाणं निवर्तनिक, निजतनुप्रमाणमित्यन्ये। १६. पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, २०. संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उठ्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जाव आपुच्छइ आपुच्छित्ता तामलित्तीए एगते एडेइ जाव भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निषण्णे । (श०३।३६) १८. निवर्तन क्षेत्र-मान-विशेषे, तथा निज शरीर प्रमाणो। मंडल आलेखी करवी संलेखना, भात-पाणी नों पचखाणो। १६. अणसण पाओपगमन करीन, मरण वांछा अणकरतो। मुझ नै विचरिवू श्रेय इसी विध, रात्रि चितवणा धरतो।। २०. एहवो विचार करी प्रभाते, जाव सहु नैं पूछी नैं। सहु उपकरण एकांत न्हाखी नै, जाव पादोपगमन करीनै ।। २१. अंक इगतीस न देश को ए, एकावनमी ढालो। भिक्खु भारीमाल ऋषराय प्रसादे, 'जय-जश' हरप विशालो। ढाल : ५२ तिण काले नै तिण समय, बलिचचा रजधानि । थइ इंद्र-रहित पुरोहित-रहित, नहि शांति कर्मकर जानि ।। १. तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहाणी अजिंदा अपुरोहिया या बि होत्था। (श० ३।३७) 'अपुरोहिय'त्ति शांतिकर्मकारिरहिता (वृ०-६० १६७) २. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थब्बया बहवे असूरकुमारा देवा य देवीओ य तामलि बालतवस्सिं ओहिणा आभोएंति, बलिचंचा नां तिह समय, वसिवा वाला सोय। असुर देव देवी घणां, अवधे तामली जोय ।। ३३० भगवती-जोड़ dain Education Intermational Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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