Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रासाद द्वारादिक जोय, सोधर्म विप अवलोय।
तेहथी अर्ध प्रमाण प्रासाद, द्वारादिक नुं संवाद ।। ३१. *जाव उवागरियलेणं ते, जोजन सोल हजार।
आयाम विखंभपणे क ह्य, कहिय रे हिव परिधि प्रकार ।। ३२. जोजन सहस्र पचास ते, पांचसौ सत्ताणं पेख।
कायक विशेष ऊणी कही, दाखी रे परिधि सुविशेख ।। प्रबर तेह प्रासाद नों, च्यार परिपाटी श्रेण । इहां मूल एक प्रासाद छ, ऊंचो रे जोजन अढीसौ पवरेण ।। मूल प्रासाद सुधर्म तणं, पांचसौ जोजन मन्न । तेहथी अर्ध ऊंचापणे, ते माटै रे अढीसौ जोजन्न ।।
३१. जाव ओवारियलेणं सोलस जोयणसहस्साई आयाम
विक्खंभेणं, ३२. पण्णासं जोयणसहस्साई पंच य सत्ताण उए जोयणसते
किंचि विसेसूणे परिक्खेबेणं पण्णत्तं ।
३३. पासायाणं चत्तारि परिवाडीओ नेयवाओ,
३४.
३६.
३७.
यतनी ३५. ऊंचपण ए मूल प्रासाद, अढाईसौ जोजन अहलाद ।
तेहथी अर्ध-अर्ध हीन होय, हिव आगल कहियै सोय ।। मूल प्रासाद नुं सुप्रकार, परिवार भूत है च्यार । ते सवासौ जोजन कहिये, ए प्रथम परिपाटी लहिय ।। बलि च्यार तणों परिवार, सोले प्रासाद छै सुखकार ।
साढा बासठ जोजन जोय, ए वीजी परिपाटी होय ।। ३८. कह्य सोल न परिवारभूत, प्रासाद चोसठ सुभ सूत ।
सदाइकतीस जोजन सार, ए तीजी परिपाटी उदार ।। ३६. चोसठ प्रासाद नं परिवार, दोयसौ छप्पन सविचार ।
पनरै जोजन नै भाग पंच, जोजन नां आठां मांहिला संच ।। ४०. ए चिउं परिपाटी न्हाल, सर्व तीनसौ नैं इकताल।
सुधर्म थी सहु अर्ध ऊंचास, अन्य सूत्र थकी कह्या तास ।। ४१. *सुधर्मादिक सभा जिके, राजधानी में नाय ।
ते तो उत्पत्ति स्थानक हुदै, तिण सूं भाख्यो रे सेसा नस्थिताय।।
४१. सेसा नत्थि।
(श०३१२५१) सुधर्मादि सभा इह न सन्ति, उत्पत्तिस्थानेष्वेव तासां भावात् ।
(वृ०-५० १६६) ४२, ४३. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो
इमे देवा आणा-उबवाय-वयण-निद्देसे चिट्ठति, तं जहा
४२. शक्र देवेंद्र देव राजा तणां, महाराय सोम एह।
तसं आज्ञाकारी देवता, उववाय रे सेव करेह ।। ४३. वयण कहितां वचन ते, अनियोग पूर्वक आदेश ।
निर्देश उत्तर पूछयां तणो, एहनें विष रे रहै छै विशेष ।। ४४. सोमकाइया सोम नी जाति नां, सोम परिवार उदार ।
सोमदेवतकाइया, सोम सामानिक रे प्रमुख परिवार ।।
४४. सोमकाइया इवा, सोमदेवयकाइया इ वा
'सोमकाइय' त्ति सोमस्य कायो-निकायो येषामस्ति ते सोमकायिका:-सोमपरिवारभूताः 'सोमदेवयकाइय' त्ति सोमदेवता:-तत्सामानिकादयस्तासां कायो येषामस्ति ते सोमदेवताकायिकाः सोमसामानिकादिदेवपरिवारभूता इत्यर्थः ।
(वृ०-प० १६६)
"लय--रावण राय आशा अधिकी अथाय
श०३, उ०७, ढा०६६ ३६७
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