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आगासत्थिकाय - आश्रय देने वाला तत्त्व
आचार-आचरण
आजीवन
हमादाय
आतापना - सूर्य के सामने खड़ा होकर, बैठकर या लेटकर ताप लेना
आत्मांगुल - जिस समय जो मनुष्य हों, उनके अंगुल का
प्रमाण
आत्मारंभा अपने द्वारा अपनी हिसा करने वाला आदानभण्ड निक्षेपणा— पांच समितियों में चौथी समिति आदेय-ग्राह्य
आधाकर्मी मुनि के निमित्त बनाया हुआ भोजन, मकान आदि
आनुपूर्वी - अनुक्रम
आबाधा -- कर्म बन्धन के बाद एक निश्चित समय तक उसके
आयु - आयुष्य
आयुक्षय मनुष्य आदि की पर्याय के निमित्तभूत आयुष्य कर्म के दुमलों का निर्जरण
आयोग अधिक ब्याज पर धन देना
आरंभिया - हिंसा से होने वाला कर्मबन्ध
आराधक मोक्ष का साधक
आर्जव ऋजुता
आर्त्तध्यान-प्रिय के वियोग और अप्रिय के संयोग में होने
वाला अशुभ ध्यान
आवलिका - सूक्ष्म काल परिमाण
आवनिकाय पक्तिबद्ध
उदय का अभाव
अभियोगिक निम्न श्रेणी के देव
आभोग - उपयोग, जागरूकता
उत्तरगुण- तपस्या आदि अनुष्ठान
आयंबिल - एक प्रकार का तप, जिसमें एक बार एक ही उत्तर वैक्रिय - वैक्रिय लब्धि के द्वारा निर्मित शरीर अन्न का भोजन किया जाता है।
उत्पाद - उत्पन्न होना
आयाम --- लम्बाई
उत्सर्ग --- सामान्य विधान
आवश्यक सामायिकादि छह आवश्यक, प्रतिक्रमण आवीचीमरण-प्रतिक्षण होने वाला आयुष्य का क्षय आश्रव (द्वार ) कर्म ग्रहण करने वाले आत्म परिणाम आहारक शरीर पूर्वी केवलज्ञानी के पास जाने के लिए जिस शरीर का निर्माण करता है वह शरीर
आहारक समुद्घात- आहारक लब्धि का प्रयोग आहार पर्या ( पर्याप्त ) - जन्म के प्रथम समय में निष्पन्न पौद्गलिक द्रव्यों के ग्रहण, परिणमन और उत्सर्ग की
शक्ति जिसे ओज आहार कहा जाता है। आहारीक (लब्धि ) - शरीर विशेष के निर्माण की शक्ति
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इंगित मरण वह अनशन, जिसमें दूसरे व्यक्ति के द्वारा शरीर का परिकर्म नहीं करवाया जाता
इरियावहि वीतराग के होनेवाला द्विसायिक कर्मबन्ध
ईति उपद्रव
ईवा ( समिति ) संपयी की संयमपूर्वक होने वाली गति ईषत्प्राग्भारा - सिद्धशिला नामक मुक्त जीवों का आवास
स्थान
हायपरान्त होने वाला मुखी ज्ञान
उच्छेद अंगुल ( उत्सेधांगुल) - पांचवा आरा आधा बीत जाने पर जो मनुष्य होंगे, उनके आंगुल का प्रमाण
उट्ठाण — उठना
उदय ( उदयभाव ) - कर्मों के अनुभव की अवस्था उदीरणा (उदीरित) भविष्य मे उदय में आने वाले कर्मों को
अपवर्तनकरण के द्वारा समय से पहले उदय में ले आना उद्वर्तन करण- - जीव का वप प्रयत्न, जिससे कर्मों की स्थिति और रस में वृद्धि होती है।
उपओग-चेतना का व्यापार
उपक्रमिकी वेदना- किसी निमित्त या कर्मों के उदय से होने वाली वेदना
उपधि---मुनि के उपकरण
उपवास एक दिन के लिए आहार परिहार उपशमचरण - मोहकर्म के उपशम से प्राप्त होने वाला चारित्र
उपशम भाव- -मोह कर्म के वेदन का अभाव
उपसम श्रेणी - आठवें गुणस्थान से आगे आरोहण करने के लिए ली जाने वाली एक श्रेणी, जिसमें मोहकर्म का उपशमन होता है।
उपशम सम्यक्त्व --दर्शन मोह कर्म के उपशम से प्राप्त होने वाला सम्यक्त्व
उपशांत मोह - ग्यारहवें गुणस्थान का मुनि, जिसका, मोहकर्म सर्वथा उपशान्त हो गया हो
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परिशिष्ट ४२५
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