Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 428
________________ ढाल : ६६ दूहा छठे उदेशै अंत में, आत्म - रक्षक बात। लोकपाल हिव इंद्र नां, कहिये तसं अवदात ।। नगर राजगृह नै विप, जाव करंता सेव । बोल्या गोयम गणहरू, अलगो करि अहमेव ।। हे प्रभु ! शक देवेद्र नै, देवराय नै देख। लोकपाल कितला कह्या, जिन कहै चिउं सपेख ।। १. षष्ठोद्देशके इन्द्राणामात्मरक्षा उक्ताः, अथ सप्तमोद्देशके तेषामेव लोकपालान् दर्शयितुमाह- (वृ०-प० १६४) २. रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी ३. सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो कति लोगपाला पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं जहा४. सोमे जमे वरुणे वेसमणे। (श० ३।२४७) एएसि णं भंते ! चउण्हं लोगपालाणं कति विमाणा सोम जम तीजो वरुण, बली वैश्रमण सार । हे प्रभ ! आं च्यारा तणे, किता विमाण उदार? पण्णत्ता? ५. गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता, तं जहा--संझप्पभे वरसिठे सयंजले वग्गू। (श० ३।२४८) ६. कहि णं भंते ! सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो संझप्पभे नाम महाविमाणे पण्णत्ते ? ७. गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जिन कहै च्यार विमाण छै, संझप्रभ वरशिष्ट। पुनः सयंजल नै वग्गु, ए च्यारूंइ वरिष्ट ।। *जिनेश्वर, देव-जिनेंद्र दाखंत, प्रश्न पूछ रे गोयम श्रमण महंत । (ध्रुपदं) ६. किहां प्रभु ! शक्र देवेंद्र नां, देवराजा नां जाण । सोम महाराजा तणों, संझप्रभ रे नामैं महा विमाण ।। ७. जिन कहै जंबुद्वीप नां, मेरु - गिरि थी माण। ___ दक्षिण दिशि मांहै अछ, सुणियै रे तास वखाण ।। ८. रत्नप्रभा पृथ्वी विपै, भूमिभाग बहु-सम-रमणीक । ते मेरु नै मध्य रह्यो, च्यारू रे दिशि विच ठीक ।। १. भूमि विष सहस्र जोजन रह्यो, पृथुलपणे पहिछान । तिहां गोथण आकारे अष्ट प्रदेश नां, रुचक नामा रे भूतल स्थान ।। १०. तेह थकी ऊंचा अछ, रवि शशि ग्रह-समुदाय । ___नक्षत्र तारारूप नै, बहु जोजन रे ऊंचो ताय । ११. जावत् पंच वडिसगा, जाव शब्द में एह। पाठ कह्या छै एतला, सुणिये रे श्रोता चित देह ।। १२. बहु जोजन नां सैकडां, बहु सहस्र जोजन जोड। बहु लक्ष नै बहु कोड ते, जोजन रे बहु कोडाकोड। ८. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमि भागाओ १०. उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूई जोयणाई ११. जाव इह यावत्करणादिदं दृश्यम्। (वृ०-५० १६५) १२. बहूहि जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयण सयसहस्साई बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ। (वृ०-५० १६५) १३. उड्ढं दूरं वीइवइत्ता एत्थ णं सोहम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्ने। (वृ०-५० १६५) १३. ऊवं दूर इता अतिक्रमी, इहां सुधर्म देवलोग। लांबो पूरव पश्चिमै, चोडो रे दक्षिण उत्तर जोग। *लय-रावणराय आशा अधिकी अथाय श०३, उ० ७, ढा ६६ ३६५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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