Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
जिम युवती प्रति पुरुष युवानज, ग्रहै हस्त करि हाथ। तं चेव यावत् त्रिहुं काल नी, विषय-मात्र कही बात ।।
१७. गोयमा ! से जहानामए--जुबई जुवाणे हत्थेणं हत्थे
गेण्हेज्जा, तं चेव जाव बिउब्बिसु वा, विउव्वति वा, विउब्बिस्सति वा।
(श० ३.१६८) १८. से जहानामए केइ पुरिसे एगओपडागं काउं गच्छेज्जा,
यथा दृष्टंते कोइ पुरुष बलि, एक दिशे कहिवाय । ध्वजा-पताका छै तिहां एहवो, करिनै चाल्यो जाय ।। भावितात्म अणगार इसी विध, एक पताका हाथ । कार्य ऊपनै जाय आकाशे ? जिन कहै हंता जात ॥
अणगार हे प्रभु! भावित-आतम, इक दिशि पताका हाथ । रूप किता विकूर्वण समर्थ ? जाव त्रिहं काल बात ।।
१६. एवामेव अणगारे वि भाविअप्पा एगओपडागाहत्थ
किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा।
(श० ३।१६६) २०. अणगारे णं भंते भाविअप्पा केवइयाई पभू एगओपडागा
हत्थकिच्चगयाई रूवाई विकुवित्तए? एवं चेव जाव विकुब्बिसु वा, विकुब्वति वा, विकुव्विस्सति वा ।
(श० ३२००) २१. एवं दुहओपडागं पि।
(श० ३।२०१)
बेहं दिश कानीं पताका इह विध, ते दुहओ पहिछाण। जिम दंड नै ध्वज हवै इक दिश, तेम बेहुं दिशि जाण ।। यथा दृष्टांते कोइ पुरुष, एक पास जनोई ताय । एक जनोई सहित रूप करिने, मारग चाल्यो जाय ।। इम साध पिण भावित-आतम, जनोई एक पास। कार्य आश्री पोते जाय गगने ? जिन कहै हंता तास ।।
भावितात्म अणगार प्रभु ! किता जनोई इक दिशि कृत्य । रूप विकुर्वण समर्थ तिमहिज, जाव अद्धा त्रिहुं वृत्य ।।
इम बिहं पास जनोई कहिवी, से जहानाम दृष्टंत। कोइ पुरुष एक पास पालथी, इम करि तिहां रहंत ।।
२२. से जहानामए केइ पुरिसे एगओजण्णोवइतं काउं
गच्छेज्जा, २३. एवामेव अणगारे वि भाविअप्पा एगओजण्णोवइतकिच्च
गएणं अप्पाणेणं उड्ढं बेहासं उप्पएज्जा? हता उप्पएज्जा।
(श०३।२०२) २४. अणगारे णं भंते ! भाविअप्पा केवइयाई पभू एगओ
जण्णोवइतकिच्चगयाई रुवाई विकुवित्तए? त चेव जाब विकुब्बिसु वा, विकुब्वति वा, विकुविस्सति वा।
(श०३।२०३) २५. एवं दुहओजण्णोवइयं पि। (श०३।२०४)
से जहानामए केइ पुरिसे एगओपल्हत्थियं काउं चिट्ठज्जा, २६. एवामेव अणगारे वि भाविअप्पा एगओपल्हत्थियं किच्च
गएणं अप्पाणणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? तं चेव जाव विकुव्विसु वा विकुब्वति वा विकुब्विस्सति वा।
(श०३।२०५) एवं दुहओपल्हत्थियं पि।
(श०३।२०६) २७. से जहानामए केइ परिसे एगओपलियंक काउं
चिठेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओपलियंककित्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? त चेव जाव विकुविसु वा, विकुब्वति वा, विकुव्विस्सति वा ।
(श० ३।२०७) २८. एवं दुहओपलियंक पि।
(श० ३।२०८)
२६.
इम साधु पिण भावित-आतम, तं चेव जाव त्रिकाल । इम बेहं दिशि थी पालथी वाली, बेसै ए पिण न्हाल ।।
से जहानामए कोइ पुरुष, एक पास पल्यंक तिष्ठेह। तं चेव जाव विकुर्वण इतरी, काल त्रिहं न करेह ।।
२८.
इम बिहं पास पल्यंक तणों पिण, कहिवो सूत्र विचार। बलि मुनि लब्धि फोडवै तेहनों, आगल छै अधिकार ।। हे प्रभु ! अणगार भावित-आतम, लब्धिधारी छै जेह । बाह्य पुद्गल अणलीधै साधु, समर्थ कहियै तेह ।।
२६.
२६. अणगारे णं भंते ! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरि
याइत्ता पभू
३८६ भगवती-जोड़
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474